SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 87
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ पुराण मध्य लोक अधोलोक के तनुपातवलय के अन्तभाग तक मध्यलोक स्थित है। यह मुंदगाकृति हैं। तिर्यक लोक पृथ्वी तल के एक हजार नीचे एंव निन्यायवें हजार योजन ऊचाई तक है। मध्यलोक के मध्यभाग में जम्बुद्वीप लवण समुद्र से घिरा हुआ है" लवण समुद्र एक हजार योजन विस्तार वाला है / लवण समुद्र को आकाश के समान विस्तृत, पाताल के समान गहरा एंव तमालवन के समान श्याम वर्ण का बतलाया गया है२६ जम्बूद्वीप ___ भरत जम्बूद्वीप के दक्षिणी भाग में स्थित है। जैन पुराणों में वर्णित द्वीपों में जम्बूद्वीप का वर्णन अधिक विस्तृत पाया जाता है। जम्बूवृक्ष होने के कारण द्वीप का नाम जम्बूद्वीप हुआ। इसका आकार गोल है। हरिवंश पुराण में जम्बूद्वीप की परिधि तीन लाख, सोलह हजार, दो सौ सत्ताइस योजन, तीनकोश एक सौ अट्ठाइस धनुष एंव साढ़े तीन ऊंगल बतायी गयी है। आदिपुराण में जम्बूद्वीप को एक लाख योजन चौड़ा माना गया है | जम्बूद्वीप का धनाकार क्षेत्र सात सौ नव्वे करोड़, छप्पनलाख, चौरानब्बे हजार एक सौ पचास योजन बतलाया गया है | जम्बूद्वीप में सातक्षेत्र, एक मेरु, दो करु, जम्बू एंव शाल्मली नामक दो वृक्ष, छ: कुलाचल, छ: महासरोवर, चौदह महानदिया, बारह विभंगा नदियाँ आदि की स्थिति मान्य की गयी है। क्षेत्र जम्बूद्वीप में भरत, हेमवत, हरि, विदेह, रम्यक हैरण्यवत और ऐरावत ये सात क्षेत्र स्थित हैं। भरत क्षेत्र जम्बूद्वीप के उत्तर में एंव ऐरावत क्षेत्र दक्षिण में है। भरत भरत क्षेत्र का विस्तार पाँच सौ छब्बीस योजन तथा एक योजन के उन्नीस भागों में छ: भाग प्रमाण है५ यह जम्बूद्वीप के विस्तार का एक सौ नब्वे वॉ भाग है। भरत क्षेत्र की प्रत्यंचा चौदह हजार चार सौ इकहत्तर योजन एंव कुछ कम छ: कला है। इसकी चूलिका अठारह सौ पचहत्तर योजन तथा कुछ अधिक साढ़े छ: भाग बतलायी गयी है | भरत क्षेत्र के ठीक मध्यभाग में विजयार्द्ध पर्वत है। यह पर्वत पूर्व एंव पश्चिम के समुद्रों तक विस्तृत है३७ | रजत के समान सफेद यह पर्वत पच्चीस योजन पृथ्वी के ऊपर एंव छह योजन पृथ्वी के नीचे तक विस्तृत है। पृथ्वी से दस योजन ऊपर पर्वत की उत्तर एंव दक्षिण दो श्रेणियाँ हैं / दक्षिण-श्रेणी में स्वर्गपुरी
SR No.032855
Book TitleJain Sahitya ka Samajshastriya Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUsha Agarwal
PublisherClassical Publishing Company
Publication Year2002
Total Pages268
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy