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________________ जैन साहित्य का समाजशास्त्रीय इतिहास द्वारा जैन लेखकों की विशेषता है। जैन इतिहास आदर्शोन्मुखी होते हुए भी जीवन के यथार्थ धरातल पर टिका है। यह धरातल ऐतिहासिक घटनाओं एंव सामाजिक जीवन के विविध पक्षों से निर्मित हुआ है। ऐतिहासिक कथानक प्रायः राजकुलों से सम्बन्धित हैं एंव सामाजिक जीवन समाज के उच्च-निम्न धनी निर्धन सभी वर्गों से सम्बन्धित हैं।.. ___ जैन इतिहासकारों के साहित्य में मनुस्मृति जैसी ब्राह्मण क्षत्रिय वैश्य के लिए अलग अलग रंग के कपड़े छोटे बड़े दण्ड, समान स्थिति में समान सुविधाओं का न होना आदि जैसी विषमताएं नहीं है। आर्य एंव अनार्य सभी को समान स्थान दिया गया है। जैन इतिहास लेखकों ने अतीत एंव अनागत की घटनाओं के साथ ही साथ वर्तमान कालिक घटनाओं का वर्णन भी किया है जिससे तत्कालीन जीवन के सभी क्षेत्रों के महत्वपूर्ण पक्षों का ज्ञान हो जाता है। जैन साहित्य के विविधरुपों को देखने से ज्ञात होता है कि जैनाचार्यों ने "आचार पर विशेष बल दिया है कारण कि जैन तीर्थकरों के आगे मूल समस्या दुःख का निवारण थी। जैन साहित्य आचार सम्पन्न आचार्यो की देन है। इन्होंने श्रृंगार प्रधान काव्यों की भी रचना की किन्तु उनका श्रृंगारवर्णन उद्दीपक नहीं है किन्तु उपशामक है। क्योंकि से शान्त रस में निमग्न आचार्यो द्वारा लिखा गया है। जैन इतिहास लेखकों ने अपने धर्म को प्रचारित एव स्थायी रुप देने के लिए साहित्य रचना की और इसमें तत्कालीन जीवन के सभी पक्षों का चित्रण करना उनकी विशेषता है। संदर्भ ग्रन्थ 1. अजितपुराण 2-57, मल्लिनाथ पुराण 241/242. स्यणचूडरायचरिय, जिन रत्न कोष पू० 160 / 2. . पाटन का शास्त्र भंडार, आगरा का सरस्वती भवन, झालरपाटण का सरस्वती भवन, जैसलमेर के पुस्तक भंडार, बम्बई के ए०पं० सरस्वती भवन। जैनशिला लेख संग्रह भाग 4 लेख नं 217 / हिस्ट्री ऑफ राष्ट्रकूटराज पृ 272-73 एपीग्राफिका इंडिका भाग 10 पृ 146 / एपीग्राफिका इंडिका भाग 6. पृ 26/3| . 4. प्रा०सा०इ० पृ० 476 / 5. त०सू० 10/3 / 6. आउट लाइन्स ऑफ जैनिज्म पृ७-६६ / प०च० "विमल 22/11 जै०शि०स०भाग
SR No.032855
Book TitleJain Sahitya ka Samajshastriya Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUsha Agarwal
PublisherClassical Publishing Company
Publication Year2002
Total Pages268
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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