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________________ जैन इतिहास लेखकों का उद्देश्य 46 विस्तृत उल्लेख कर आर्थिक विषमता के समाज में आर्थिक समन्वय का रुप अपनाया गया है। - जैन इतिहास लेखकों ने अपने साहित्य के माध्यम से शान्तिमय जीवन पर अधिक बल दिया है लेकिन उन्होंने आवश्यकतानुसार श्रृंगार, वीर, रौद्र आदि का वर्णन करने पर भी शान्तरस को प्रधानता दी है। इसका कारण जीवन की अनेक उपलब्धियों को प्राप्त करने पर भी किसी जैन तीर्थकर अथवा मुनि के उपदेश श्रवण द्वारा जीवन एंव संसार से विरक्त होना आदि को स्पष्ट करके निवृत्तिमूलक प्रवृत्ति को महत्वपूर्ण स्थान देता है। जैन इतिहास लेखकों द्वारा अपने साहित्य में अलौकिक एंव अप्राकृत तत्वों का वर्णन किया गया है। समय समय पर विद्याधर यक्ष, गन्धर्व, देव, राक्षस आदि द्वारा अलौकिक कार्य किये जाने एंव मानवीय पात्रों की सहायता करते हुए दिखाकर पूर्वभव के कर्मो एंव सम्बन्धों के महत्व को स्पष्ट करना उनकी मूल विशेषता है। जैन इतिहासकारों का विचार दर्शन है - कर्मवाद, दुष्कर्म से वचना एंव सत्कर्म की और प्रवृत्त होना। इसी मूल चेतना के आधार पर विशेषकर कथा साहित्यकारों ने अपने कथानकों में ऐसी घटनाओं को जन्म दिया जिनके द्वारा जनसाधारण को पाप कर्मो की ओर अरुचि एंव शुभकामों की ओर प्रवृत्ति जागृत होती है। सत् पात्रों को कथाओं के अन्त में सुख एंव असत पात्रों को दुःख प्राप्त करते हुए चित्रित करना जैन इतिहासकारों की अपने धर्म के आचारों विचारों को व्यापक एंव चिरस्थायी बनाने की विशेषता है। जैन ग्रन्थों में ईश्वरीय विविध कल्पनाओं के स्थान पर आत्मा की अनन्त शक्तियों का वर्णन करके आत्मा एंव ईश्वर सम्बन्धी तत्वज्ञान की विचारधाराओं को आत्मा की ही प्राकृतिक स्वभाव जनित अनन्तता में प्रवाहित करना जैनाचार्यो की प्रमुख विशेषता है। जैनों के कर्मवाद में ईश्वर का कोई स्थान नहीं उसे केवल एक आदर्श और उत्कृष्टत्तम ध्येय माना है वह विश्व का सृष्टा एंव नियामक नहीं माना गया है यह प्रत्येक आत्मा का उत्कृष्टतम विकास मात्र है। आत्मा सात्विकता एंव नैतिकता के बल पर ईश्वरत्व को प्राप्त कर सकती है एंव आवागमन से मुक्त हो जाती है। जैनधर्म की ये मान्यता कथाओं के पाध्यम से अत्याधिक स्पष्ट की गयी है। इसके अनुसार आत्मा के तीन स्तर - बहिरात्मा, अन्तरात्मा एंव परमात्मा होते हैं। यह शरीर ही आत्मा है यही बहिरात्मा है। शरीर, इन्द्रिय एंव मन से भिन्न वस्तु मोहनीय आदि कर्मो के वशीभूत होने वाला जीव ही अन्तरात्मा के नाम से पुकारा जाता है यह अन्तरात्मा विशिष्ट साधनों के द्वारा परमात्मा का रुप धारण कर लेता है। परमात्मा आत्मा के अतिरिक्त कुछ नहीं है अतएंव दुःख से निवृत्ति का साधन आत्मा को परमात्मा का रुप समझना एंव कर्मो का क्षय का उपदेश अपने साहित्य
SR No.032855
Book TitleJain Sahitya ka Samajshastriya Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUsha Agarwal
PublisherClassical Publishing Company
Publication Year2002
Total Pages268
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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