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________________ जैन इतिहास लेखकों का उद्देश्य 41 रामायण में हनुमान एंव सुग्रीव को वानर वंशीय बतलाया गया है। इसके साथ ही वानर को पशु विशेष माना गया है। जैन विद्वानों का मत है कि हनुमान जैसे विद्वान जो व्याकरण की जरा भी त्रुटि नहीं करते वे वन्यपशु कैसे हो सकतें हैं। जैन कवि के अनुसार वानर सभ्य, संस्कृत एंव शक्तिशाली थे उन्होंने हनुमान सुग्रीव रावण आदि को विद्याधर नामक जातिविशेष के रुप में चित्रित किया है। जिनका ध्वज चिन्ह वानर होने के कारण ही उन्हें वानर विशेष संज्ञा से सम्बोधित किया गया। . ब्राह्मण संस्कृति ने वानर रुप देते हुए देवता के रुप में प्रतिष्ठित करके भी हनुमान के जीवन को आधार मानकर स्वतन्त्र ग्रन्थ की रचना नहीं की। जैन कवियों ने हनुमान के सम्पूर्ण व्यक्तित्व को आधार मानकर ग्रन्थ रचना करके अपनी श्रद्धा व्यक्त की है जिसमें हनुमान के तेजोमय बालरुप का वर्णन प्राप्त होता है। जैन साहित्य में हनुमान एक मानव रुप में चित्रित किये गये हैं वे एक शूरवीर सामन्त हैं वे मध्यकालीन सामन्तों की भांति ही एक से अधिक स्त्रियों के पति हैं। उनके रुप, सौन्दर्य एंव पराक्रम से अभिभूत हो आकर्षित होने वाली को पत्नी रुप में स्वीकार करने में उन्हें कोई आपत्ति न थी। बाल्मीकि रामायण की लंकिनी को जैन साहित्यकारों ने जैन संस्कृतीकरण में लंकासुन्दरी से हनुमान का विवाह कराकर अपने उपर्युक्त मत की पुष्टि की है। विदेशों में भारतीय संस्कृति के पहुंचने के साथ ही हनुमान का जैन रुप भी प्रसारित हुआ है। सेठ गोविन्ददास का मत है कि दक्षिणीपूर्वी एशिया में कुछ ऐसी मूर्तियाँ प्राप्त हैं जिनमें हनुमान सहस्त्र स्त्रियों के पति रुप में प्रदर्शित हैं। हिन्दू धर्म के अन्तर्गत यक्षों एंव नागों की पूजा होती थी एंव इनके मन्दिर भी बनाये जाते थे। इनके उपासकों को भारतीय इतिहास वेत्ताओं द्वारा अनार्य कहा गया है। लेकिन जैन इतिहास लेखकों ने अपने ग्रन्थों में प्रमुख यक्ष नागादि देवताओं को अपने तीर्थकंरों के रक्षक रुप से स्वीकार कर, उन्हें अपने देवालयों में स्थान दिया राम विषयक ग्रन्थ को लिखने का मूल उद्देश्य प्रचलित रामकथा के ब्राह्मण रुप के समान अपने सम्प्रदाय के लोगों के लिए रामकथा का जैन रुप प्रस्तुत करना था। योग वशिष्ठ रामायण में राम जिनेन्द्र की भांति शान्त स्वभाव के वर्णित किये गये हैं / बाल्मीकि रामायण में भी राम के पिता दशरथ श्रमणों का अतिथि रुप में सत्कार करते हैं। 20 वें तीर्थकर मुनिसुव्रतनाथ राम के समकालीन कहे जाते हैं। जैन इतिहास लेखकों ने राम एंव रावण दोनों के प्रति पूज्य भाव रखा है रावण, कुम्भकर्ण सुग्रीव, हनुमानादि राक्षसों एंव वानरों दैत्यों एंव पशुओं के रुप में चित्रित न करके
SR No.032855
Book TitleJain Sahitya ka Samajshastriya Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUsha Agarwal
PublisherClassical Publishing Company
Publication Year2002
Total Pages268
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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