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________________ X0 जैन साहित्य का समाजशास्त्रीय इतिहास जिसमें राम एंव लक्ष्मण को ईश्वर का अवतार एंव रावण को राक्षसवंश का बतलाया गया है। जैन इतिहास लेखकों ने इनकी गणना त्रिशष्ठिशलाका-पुरुषों में करके इन्हें उच्च स्थान प्रदान किया है ये कमशः बलदेव, वासुदेव एंव प्रतिवासुदेव कहे गये हैं। विमलसूरि द्वारा बाल्मीकि रामायण को आधार बनाकर पउमचरित की रचना जैनदृष्टिकोण से की गयी है जो जैन इतिहास की उत्कृष्ट विशेषता है। जैनाचार्यों एंव साहित्यकारों द्वारा हिन्दू धर्म के अन्तर्गत परम्परागत चले आने वाले अलौकिक प्रसंगों को मानवी एंव बुद्धिसंगत बनाने के प्रयत्न किये गये एंव जैनीकरण की प्रक्रिया अपनायी गयी। जैनागमों के अनुसार राम आठवें बलदेव एंव लक्ष्मण आठवें वासुदेव एंव रावण को प्रतिवासुदेव माना गया है। हिन्दू ग्रन्थों में रावण को राक्षस रुप में चित्रित किया गया है वह असत् तामस प्रवृत्तियों का प्रतीक है वह अधार्मिक था क्योंकि वे वैदिककालीन साधुओं का विरोधी था। जैन परम्परा में रावण का यह रुप स्वीकृत नहीं करके उसे उदात्त रुप में चित्रित किया गया है। उसे प्रतिवासुदेव का पद दिया गया है वह जिनका भक्त, धार्मिक एंव व्रती था। सीता हरण के पश्चात् भी उसका चरित्र उपेक्षित दृष्टि का पात्र नही। रावण को दशमुखी राक्षस न मानकर उसे विद्याधर वंशी माना है। स्वयम्भू ने रावण के दशमुख कहे जाने की व्याख्या बहुत सुन्दर ढंग से की है उसके स्वाभाविक एक मुख के अतिरिक्त गले के हार के नौ मणियों में मुख का प्रतिबिम्ब पड़ने से उसे दशानन कहा गया है। रावण का व्रत था कि “वह किसी स्त्री को राजी किये बिना वह कभी उसे अपने उपभोग का साट न नहीं बनायेगा।” इस तरह के उल्लेखों से उसे राक्षसी वृत्ति से ऊपर उठाया गया है एंव उच्चता एंव सम्मानका स्थान दिया गया है। तुलसीकृत रामचरितमानस एंव भवभूति ने सीता को देवी रुप दिया है वहाँ स्वयम्भू उसे मानवी रुप देते हैं। अग्नि परीक्षा हो जाने पर भी जिस सीता के सम्बन्ध में लोक धारणा निःशंक नहीं हो सकी उस प्रसंग को जै नरामायण में सीता द्वारा रावण से प्रेम करने के लिए किसी भी प्रकार राजी न होने एंव रावण को राक्षसी वृत्ति से ऊपर उठाकर सीता के अक्षुण्ण सतीत्व का प्रमाण उपस्थित किया गया है। जहाँ कैकेयी, उर्मिला, सीता, यशोधरा आदि का वर्णन किया गया है वहाँ हनुमत्जननी अंजना का चरित्र उपेक्षित रहा है। ब्राह्मण पुराणों में जो चरित्र वित्रण उपेक्षित किया गया है वह श्रद्धा से कहीं अधिक उपेक्षा भाव वितृष्णा की अधिकारी / है। जैन लेखकों ने पति परित्यक्ता अंजना के विरह का वर्णन करके उसके प्रति श्रद्धा एंव उदारवादी दृष्टिकोण अपनाया है कैकेयी को भी ईर्ष्या जैसी दुर्भावना से बचाया गया है।
SR No.032855
Book TitleJain Sahitya ka Samajshastriya Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUsha Agarwal
PublisherClassical Publishing Company
Publication Year2002
Total Pages268
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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