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________________ जैन इतिहास लेखकों का उद्देश्य एंव उनकी विशेषताएं __ जैन इतिहास का निर्माण जो विविध रुपों-पुराण, चरित, कथा एंव अभिलेखीय साहित्य के रुप में हुआ है, का तत्कालीन परिस्थितियों से प्रभावित होना था। छठी शताब्दी ईसा का समय साहित्यिक दृष्टिकोण से उदारवादी रहा उसका मुख्य कारण तत्कालीन राज्यवंशों द्वारा प्रश्रय प्राप्त होना था। उपलब्ध साहित्य से स्पष्ट होता है कि ईसा की पांचवी शताब्दी से साहित्य निर्माण प्रारम्भ हो गया था। उस समय हूणों के आक्रमण के कारण केन्द्रीय शासन का अभाव था एंव विभिन्न राज्यवंश अपनी अपनी राज्यसीमा के अन्तर्गत राज्य कर रहे थे। पूर्व-पश्चिम एंव दक्षिण भारत में जैन धर्म व्यापक रुप से फैला था। दक्षिण में पूर्वमध्यकाल में गंग, चालुक्य, कदम्ब, राष्ट्रकूट होय्यसल राज्यवंशों द्वारा जैन धर्म एंव साहित्यकारों को प्रश्रय दिया गया। विशेषकर राष्ट्रकूट राज्यवंश की शाखाओं द्वारा जैनधर्म एंव साहित्य सृजन के लिए योगदान दिया गया। वीरसेन, जिनसेन, गुणभद्र, शाक्टायन, महावीराचार्य, स्वयम्भू, पुष्पदन्त, मल्लिषेण, सोमदेव, एंव पम्प आदि कवियों द्वारा संस्कृत, प्राकृत, अपभ्रंश एंव कन्नड़ भाषाओं में साहित्य का निर्माण अनेक साहित्यिक विधाओं में किया गया। राष्ट्रकूट राजा अमोधवर्ष (815-77 ई०) जैन साहित्यकार जिनसेन के प्रति अत्यधिक श्रद्धा रखता था जीवन के अन्तिम समय में जैनधर्म स्वीकार किया एंव अनेक जैनग्रन्थों की रचना की। गुजरात में चालुक्य एंव वघेल, राजस्थान में चौहान परमारवंश की शाखाएं, एंव गहलोत, मालवा एंव चन्देल, कल्चुरि राजाओं द्वारा जैन श्रमणों एंव श्रावकों को साहित्यिक एंव कलात्मक सुविधाएं प्रदान की गयी फलतः जैन साहित्य एंव कला का बहुमुखी विकास हुआ। राज्यवंशों द्वारा जैन विद्वानों के त्याग एंव वैराग्यमय जीवन एंव विद्वता का अत्यधिक सम्मान किया जाता था। धार्मिक दृष्टिकोण से देखा जाय तो छठी शताब्दी में प्रचलित धर्मों के प्रति उदारवादी दृष्टिकोण रहा। ब्राह्मण धर्म सर्वोच्च धर्म के रुप में था जिसके अन्तर्गत अवतारों की पूजा एंव भक्ति की प्रधानता थी लेकिन तत्कालीन राजा धर्मसहिष्णु एंव अन्य धर्मो को संरक्षण देने वाले थे। बौद्ध धर्म भी सुदृढ़ स्थिति में था। जैनधर्म विकसित अवस्था में था। बल्लभी में देवर्धिगणि क्षमाश्रमण ने जैनागमों का पाँचवी शताब्दी में संकलन किया था। जैन तीर्थंकर ऋषभदेव एंव भगवान बुद्ध हिन्दू अवतारों में गिने जाते थे। तन्त्र मन्त्रों का प्रभाव बढ़ रहा था। जैनाचार्यों ने इन सभी धर्मों एंव इनके रुपों को जैनधर्म में आत्मसात् किया एवं साहित्य का निर्माण किया।
SR No.032855
Book TitleJain Sahitya ka Samajshastriya Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUsha Agarwal
PublisherClassical Publishing Company
Publication Year2002
Total Pages268
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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