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________________ अभिलेख 181 __११वीं शताब्दी के आचार्य इन्द्रनन्दि के (श्रुतावतार) एंव लेखों से शक सं० 1320 में मूल संघ में विवाद उत्पन्न होने एंव इसके साथ ही अर्हबलि आचार्य द्वारा सेन, नन्दि, सिंह, देव नाम से चार भागों में विभाजित करने की जानकारी होती है२८२ | कुछ लेखों में अंकलक देव के पश्चात् संघ के विभाजित होने के उल्लेख प्राप्त होते है। इन गणों में आचार व्यवहार की दृष्टि से पारस्परिक भेद नहीं थे२८४ | कुन्द-कुन्द को मूलसंधग्रणी माना गया है२८५ | 1 देवगण मूल संघ के अन्य गुणों में देवगण प्राचीन है। लेखों में इसका सर्वप्रथम उल्लेख पश्चिमी चालुक्य रांजवंश के ७वीं शताब्दी ई० वी० के अभिलेखों में प्राप्त होता है। जिसमें देवगण के आचार्य उदयदेव, रामदेव, जयदेव, विजयदेव को ग्राम दान देने के उल्लेख प्राप्त होते हैं२८६ | इसके पश्चात् गंगराजा मारसिंह देव द्वारा एक देव एंव जयदेव आचार्य को दान देने की जानकारी होती है२८७ | देवगण का अन्तिम उल्लेख ११वीं शताब्दी के एक लेख जिसमें देवगण के अंक देव महीदेव के गृहस्थ शिष्य द्वारा जिनालय निर्माण करने का वर्णन है, में प्राप्त होता है८८ | इन लेखों से ज्ञात होता है कि इस गण का नाम आचार्यों के नामान्त पर रखा गया प्रतीत होता है। 2 सेनगण लेखों में इस गण का प्राचीनतम उल्लेख सन् 821 के लेख में प्राप्त होता है। जिसमें गुजरात के राष्ट्रकूट शासक कर्कराज द्वारा सेनसंघ के मल्लवादि के शिष्य सुमतिपूज्यपाद के शिष्य अपराजित गुरु को हिरण्ययोगा नामक खेत दान देने का उल्लेख है। इस लेख में सेनसंघ को "चतुष्टय मूल संघ का उदयान्वय सेनसंघ' कहा है२८६ | 10 वीं शताब्दी पूर्वार्द्ध के एक लेख में सेनगण को सेनान्वय कहा गया है एंव कनकसेन मनि को एक खेत दान देने का उल्लेख है। इस लेख से कनक सेन की गुरु परम्परा ज्ञात होती है९० / उपर्युक्त दो लेखों से सेनगण के आचार्यो की वंशावली ज्ञात होती है। जैन अभिलेखों से ज्ञात होता है कि सेनगण के तीन उपभेद थे। 1 पोगरि या होगरि गच्छ, 2 पुस्तक गच्छ, 3 चंद्रक वाट अन्वय। पोगारिया होगरि गच्छ लेखों में इसे "मूलसंघ-सेनान्वय का पोगरियगण” कहा गया है जिससे ज्ञात होता है कि यह सेनगण का उपभेद था। इसके आचायों को दान देने की
SR No.032855
Book TitleJain Sahitya ka Samajshastriya Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUsha Agarwal
PublisherClassical Publishing Company
Publication Year2002
Total Pages268
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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