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________________ 142 जैन साहित्य का समाजशास्त्रीय इतिहास द्रव्यों को स्थान देता है / आकाश द्रव्य के दो भेद हैं - लोकाकाश एंव अलोकाकाश। जिसके कारण धर्म एंव अधर्म द्रव्य हैं। सर्वव्यापी आकाश के मध्य में “लोकाकाश है। सीमित होते हुए सभी द्रव्यों की सत्ता अपने में समाहित किये हैं। लोकाकाश के चारों ओर “अलोकाकाश हैं। धर्म एंव अधर्म द्रव्यों के अभाव के कारण इसमें किसी भी द्रव्य का अस्तित्व नहीं है। 5 . कालद्रव्य५३ वस्तुमात्र में परिवर्तन काल द्रव्य के द्वारा होता है ये निश्चय एंव व्यवहार के भेद से दो प्रकार का है। निश्चयकाल समस्त लोकाकाश में व्याप्त रहते हुए अपनी द्रव्यात्मक सत्ता को बनाये हैं। अन्य द्रव्यों की भांति बहुप्रदेशी नहीं है प्रत्येक प्रदेश एकत्र रहते हुए भी अपने अपने रुप में पृथक हैं - जो पर्यायों द्वारा परिवर्तित होते रहते हैं। पुद्गल व्यवहारकाल निश्चयकाल के विपरीत हैं। आकाश के एक प्रदेश में स्थित पुद्गल का एक परमाणु मन्दगति से जितनी देर में उस प्रदेश से लगे हुए दूसरे प्रदेश में पहुँचता है वह व्यवहार काल का समय है। यह समय कालद्रव्य की पर्याय है। समयों के समूह को ही आवलि, उच्छवास, मुहुर्त, दिन-रात, पक्ष, मास, वर्ष, युग आदि कहा जाता है | इस व्यवहार काल की जानकारी सौरमंडल की गति एंव घड़ी बगैरह के द्वारा होती है। जैन दर्शन में मान्य इन षड्द्रव्यों में जीव द्रव्य ही चेतन है एंव अन्य सभी | द्रव्य अचेतन हैं। इसी तरह पुद्गल द्रव्य ही मूर्त है एंव अन्य द्रव्य अमूर्त हैं। सभी द्रव्यों के सामान्य लक्षणों की जानकारी चरितकाव्यों से होती है | बन्ध द्रव्य कर्मो एंव उनकी उत्तर प्रकृतियों से कर्मबन्ध का कारण जीव का कषायात्मक मन, वचन, एंव काय की प्रवृत्तियाँ हैं। कर्म परमाणुओं का आत्म प्रदेशों के साथ सम्बन्ध हो जाने को कर्मवन्ध कहते हैं / मिथ्यात्व परिणाम, अविरति, प्रमाद, कषाय एंव योग ही वन्ध के कारण है५७ | चरितकाव्यों से मिथ्यात्वपरिणाम के सात भेदों, अविरति के बारह भेदों, प्रमाद के आठ भेदों, कषाय के पच्चीस भेदों एंव योग के तीन भेदों एंव अनेक प्रभेदों की जानकारी होती है३५८ / कर्म सिद्धान्त में कर्मों के सत्व, उदय, उदीरणा, उत्कर्षण, अपकर्षण, सक्रमण, उपशम, निधत्ति एंव निकाचना पर विचार करने की भी जानकारी होती है.५६ | शुभ एंव अशुभ दोनों ही प्रवृत्तियाँ कर्मबन्ध का कारण है। इनके द्वारा जीव
SR No.032855
Book TitleJain Sahitya ka Samajshastriya Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUsha Agarwal
PublisherClassical Publishing Company
Publication Year2002
Total Pages268
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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