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________________ 126 जैन साहित्य का समाजशास्त्रीय इतिहास करती थी। __समाज में पुत्र का स्थान महत्वपूर्ण था। पुत्र प्राप्ति के लिए व्रत एंव देवताओं की पूजा करती थी। पिता की आज्ञा मानना पुत्र का आवश्यक कर्तव्य था७२ / भोजन करने, जल पीने, स्नान ध्यान व्यायाम एंव स्वास्थ्य बनाये रखने सम्बन्धी नियमों की जानकारी होती है७३ | इसके साथ ही चरितकाव्यों से ग्रीष्म, वर्षा, शरद आदि ऋतुओं की जानकारी होती है। धर्मात्मा व्यक्ति राहगीरों की धूप, वर्षा से रक्षा करने के लिए वृक्षारोपण करते एंव प्याऊ लगवाते थे। ढाक, ताड़पत्र, हिंताल, एंव केले के पत्तों द्वारा पंखा बनाने एंव उनसे हवा करने की जानकारी होती है / वर्षाकाल में पृथ्वी पर सर्वत्र पानी हो जाने के कारण यात्राओं के मार्ग दुर्गम हो जाते थे। व्यापारियों को व्यापार कार्य में अत्याधिक परेशानी होती थी। अतएव धर्म, देश एंव काल के अनुसार चरितकाव्यों में सुरक्षित स्थानों पर रुक जाने के निर्देशों की जानकारी होती है।७५ | व्यापारियों द्वारा दक्षिण दिशा के द्वीपान्तरों में सामुद्रिक विजय यात्रा करने के उल्लेख प्राप्त होते हैं जिससे तत्कालीन नाविकतन्त्र की कुशलता की जानकारी होती है१६ | जहाज द्वारा व्यापार करने एंव तूफान द्वारा वाधाएं आने के उल्लेख प्राप्त होते हैं / व्यापारियों के लिए सार्थिक एंव व्यापारी संघ के नेता के लिए सार्थपति शब्दों के उल्लेखों से तत्कालीन व्यापारिक स्थिति ज्ञात होती है | भोगोलिक चरितकाव्यों में प्राप्त यात्राओं, दिग्विजय, नगरों आदि के वर्णन से तत्कालीन भोगोलिक स्थिति ज्ञात होती है जिसकी पुष्टि पौराणिक साहित्य से होती है। चरितकाव्यों में लोक की स्थिति कमर पर हाथ रख, पैरों को चौड़े कर खड़े हुए पुरुष की आकृति जैसी है। यह उत्पत्ति स्थिति एंव नाशमान पर्यायों वाले द्रव्यों से भरा हुआ है। इसकी आकृति नीचे वेत्रासन, मध्य में झालर और ऊपर से मृदंग के समान बतायी गयी है | चरितकाव्यों से ज्ञात होता है कि सम्पूर्ण लोक तीन जगत - अधोलोक, तिर्यगलोक एंव उर्ध्वलोक से घिरा है। अधोलोक में एक एक के नीचे अनुक्रम से सात भूतियों एंव उनमें नारकियों के भयंकर निवास स्थान होने की जानकारी होती है / नरकों के नाम रत्नप्रभा शर्कराप्रभा बालुकाप्रभा पंक प्रभा मोटाई नरकावासा एक लाख अस्सी हजार योजन तीस लाख एक लाख बत्तीस हजार योजन पच्चीस लाख , एक लाख अट्ठाइस हजार योजन पन्द्रह लाख एक लाख बीस हजार योजन दस लाख
SR No.032855
Book TitleJain Sahitya ka Samajshastriya Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUsha Agarwal
PublisherClassical Publishing Company
Publication Year2002
Total Pages268
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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