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________________ चरितकाव्य 125 विवाह चरितकाव्यों से ज्ञात होता है कि विवाह संस्कार एक महत्वपूर्ण संस्कार था यह शुभ महुर्त में सम्पन्न किया जाता था५६ | समाज में ज्योतिषी वर्ग का महत्व था। विवाह संस्कार में सुगन्धित जल से परिपूर्ण स्वर्णघट से अभिषेक करने की परम्परा ज्ञात होती है।५७ कुलानुरूप जातीय विवाह होते थे५८ | लेकिन जाति के बाहर विवाह होने के भी उल्लेख प्राप्त होते हैं।५६ | स्वयंवर प्रथा प्रचलित थी जिसमें किसी कला विशेष में परीक्षा करने एंव स्वयंवरमण्डप की रचना होने की जानकारी होती है१६० | उसके साथ ही प्रेमविवाह एंव ब्राह्मविवाह के भी उल्लेख मिलते हैं।६१ / वैवाहिक सम्बन्धों में गोत्र विवाह अमान्य था६२ | सौन्दर्य सौभाग्य एंव पातिव्रत्य ये तीन गुण स्त्रियों के आवश्यक गुण समझे जाते थे।६३ | चरितकाव्यों में प्राप्त अन्तःपुर के उल्लेखों से ज्ञात होता है कि बहुविवाह प्रचलित थे१६४ | रानियों के बीच परस्पर द्वेषयुक्त व्यवहार होने के उल्लेख प्राप्त होते हैं। इस व्यवहार में कुछ मन्त्री भी अपना सहयोग देते थे६५ | इन रानियों में एक पटरानी होती थी१६६ | शिक्षा शिक्षा के लिए विद्यालय होते थे। गुरु शिष्य के सम्बन्ध शिष्टाचारयुक्त होते थे। गुरु शिष्य के हित को ध्यान में रखते हुए अपनी आज्ञाओं का पालन कराना ही गुरुदक्षिणा के रुप में मान्य करते थे। गुरु शिक्षा नीति मार्ग के उपदेशों युक्त होती थी१६७ | भगवान ऋषभ ने भरत को 72 प्रकार की कलाऐं एंव बाहुबलि को अश्व, गज, स्त्रियों और पुरुषों के अनेक भेदों वाले लक्षणों का ज्ञान दिया। ब्राह्मी को 18 लिपि एंव सुन्दरी को गणित विद्या माप, अवमान प्रतिमान एंव मणि आदि पिरोने की कला सिखाई६८ | स्त्रियों की स्थिति पुरुषों के समान ही स्त्रियों की उच्च स्थिति थी। स्त्रियों द्वारा धर्मोपदेश एंव दीक्षा ग्रहण करने की जानकारी होती है१६६ | दीक्षा देने वाली स्त्रियों को आर्यिका कहा जाता था, जिसके पास दीक्षा ग्रहण कर स्त्रियाँ आजीवन ब्रह्मचर्य जीवन व्यतीत करती थी। __ चरितकाव्यों में प्राप्त उल्लेखों से ज्ञात होता है कि सेज सज्जा में पुष्प श्रृंगार के प्रमुख साधन थे। पुष्पों के विविध प्रकार के आभूषण बनाये जाते थे। चरितकाव्यों में स्त्री उपयोगी श्रृंगार प्रिय वस्तुओं का उल्लेख प्राप्त होता है। स्त्रियाँ शीतकाल में केशर के लेप, गर्मी में गोमती नदी के रमणीय तटों के वृक्षों की छाया में एंव वर्षा में कुन्द के फूल खिलने के समय प्रकाशमान मणियों के साथ क्रीड़ाऐं
SR No.032855
Book TitleJain Sahitya ka Samajshastriya Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUsha Agarwal
PublisherClassical Publishing Company
Publication Year2002
Total Pages268
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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