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________________ जैन साहित्य का समाजशास्त्रीय इतिहास हैं जिनमें शत्रु के साथ शान्तिपूर्वक समझौते के स्थान पर कठोरता का व्यवहार किया जाता था। दण्डनीति का प्रयोग साम, दान एंव भेद से कार्य के सिद्ध न होने पर किया जाता था / अपने राज्य को स्वतन्त्र बनाये रखना राजा का प्रमुख कर्तव्य था / दूत व्यवस्था चरितकाव्य से राज्य में दूत नियुक्त करने की जानकारी होती है जिनका प्रमुख कार्य राज्य से सम्बन्धित विषयों से राजा को अवगत कराना होता था। राजा तथा युवराज के राजकीय एंव व्यक्तिगत सन्देशों को दूसरे राजा तक पहुँचाते थे | ये नीति निपुण होते थे संधि, विग्रह आदि नीतियों के प्रयोग में ये राजा की सहायता करते. | चरितकाव्यों से दूतों के युद्धभूमि में जाने एंव युद्ध के समाचारों से राजा को अवगत कराने की जानकारी होती है। वैवाहिक सम्बन्धों में भी दूतों का महत्वपूर्ण स्थान होता था। चरितकाव्यों में राजदूत में स्वामीभक्ति, धूतकीड़न, मद्यपानादि व्यसनों में अनासक्त, चतुर, पवित्र, विद्वान, उदार, बुद्धिमान, रहस्यज्ञाता कुलीनता आदि गुणों का उल्लेख प्राप्त होता है-२ | चरितकाव्यों से 3 प्रकार के राजदूतों की जानकारी मिलती है। जिनका प्रमुख कर्तव्य परराष्ट्र में साम दाम दण्ड भेद आदि नीतियों का उचित पालन करना है। गुप्तवर व्यवस्था चरितकाव्यों से ज्ञात होता है कि राजा अपनी प्रजा की सुख शान्ति में वृद्धि करने एंव राजाज्ञाओं का पालन करवाने, शत्रुओं को दण्डित करने के लिए गुप्तवरों की नियुक्ति करते थे। राज्य की सर्वागीण जानकारी के लिए कृषि के क्षेत्र में कृषकों को, बाह्य प्रदेश में ग्वालों को, जंगलों में भीलों को, शहरों में व्यापारियों को, राजकीय घराने में राजकर्मचारी को गुप्तवर नियुक्त करने के उल्लेख मिलते हैं। इन्हीं पर राज्य का संचालन निर्भर रहता५ / कौटिल्य के अर्थशास्त्र से भी गुप्तवर विभाग एंव कार्यभेद से किये गये उसके नौ विभागों की जानकारी मिलती है। चरितकाव्यों से गुप्तवरों के लक्षण, गुण व उनके होने से लाभ एवं न होने से हानि की जानकारी होती है / इस तरह राजा को प्रामाणिक सूचनाएं उपलब्ध होती थी। दण्ड व्यवस्था चरितकाव्यों से अपराध एंव दण्डव्यवस्था की जानकारी होती है। राजा के पास अखण्ड अधिकार एंव चतुरगिंणी सेना होती थी जिनका प्रयोग वह राजकीय व्यवस्था में हस्तक्षेप एंव अन्य अपराधों के करने पर करता था। दण्ड व्यवस्था के
SR No.032855
Book TitleJain Sahitya ka Samajshastriya Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUsha Agarwal
PublisherClassical Publishing Company
Publication Year2002
Total Pages268
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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