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________________ चरितकाव्य 116 प्रमुख थे जिससे “अकृष्टपज्या" धान्य की उत्पत्ति होती थी। राजा कृषकों से उपज का षष्ठाशं कर रुप से ग्रहण करता था। बाजार एंव समुद्र तट पर की जाने वाली विक्रय सामग्री पर विशेष कर लगा सकता था। आय के साधनों पर राजा अपना प्रभुत्व रखता था। अन्तर्राष्ट्रीय सम्बन्ध एंव षाडगुण्य नीति चरितकाव्यों से ज्ञात होता है कि भारत अनेक राज्यों में विभक्त था। प्रमुख राज्यों का देश एंव विदेश के राजाओं के साथ राजनैतिक, व्यापारिक एंव सांस्कृतिक सम्बन्ध रहता था। अन्तर्राष्ट्रीय सम्बन्धों को बनाये रखने के लिए राजाओं को षाड्गुण्य नीतियों का पालन अत्यावश्यक होता था। इस षाडगुण्य नीति का प्रयोग राजा अपनी समृद्धि, शक्ति एंव उत्साह के अनुसार करते थे / राजा एकान्त में राज्यमंत्रियों से षाडगुण्य सम्बन्धी मन्त्रणा करते थे / M5cww. संधि - शांतिपूर्वक परस्पर मैत्री सम्बन्ध स्थापित करना विग्रह - संधर्ष एंव युद्ध का दृष्टिकोण यान - युद्ध की तैयारी आसन - उदासीन दृष्टिकोण द्वैधीभाव - एक से युद्ध दूसरे से संधि संश्रय - शक्तिमान राजा का आश्रय लेना। चरितकाव्यों में युद्धभूमि एंव परराष्ट्र सम्बन्धी चार प्रकार की परम्परागत नीति के उल्लेख मिलते हैं। जिनपर राजा अपने मंत्रियों से परामर्श करते थे। __साम - शान्तिपूर्वक समझौता दाम - आर्थिक सहायता या राजनीतिक कर्म भेद - परराष्ट्र में आन्तरिक संधर्ष एंव भेद दण्ड - बल या सेना का प्रयोग इन नीतियों के सम्यक् व्यवहार की पद्धति भी चरित काव्यों में प्राप्त होती है। राजा अपने विरोधियों एंव शत्रुओं पर एकाएक दण्ड का प्रयोग नहीं करते थे। वे कमशः साम दाम दण्ड भेद७२ आदि नीतियों का प्रयोग करके ही दण्ड को व्यावहारिक रुप७३ देते थे। साम द्वारा अपने शत्रुओं को वश में करना राजा का सर्वोत्तम गुण माना जाता था क्योंकि इससे राजा अपने कोश, यश एंव सेना को सुरक्षित बनाये रख सकता है। इन नीतियों के साथ ही ऐसे भी उल्लेख मिलते
SR No.032855
Book TitleJain Sahitya ka Samajshastriya Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUsha Agarwal
PublisherClassical Publishing Company
Publication Year2002
Total Pages268
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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