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________________ 106 जैन साहित्य का समाजशास्त्रीय इतिहास स्त्री अपने ऊपर बालक के जन्म एंव पालन की और पुरुष स्त्री एंव सन्तति के खान-पान एंव सुरक्षा आदि की जिम्मेदारी लेता है। मानव जीवन में सामाजिक संरचना बनाये रखने हेतू विवाह आवश्यक था / विवाह संस्कार शुभ मुहर्त में सम्पन्न किया जाता था। जैन परम्परा में विवाह को धार्मिक जीवन में साधक माना गया है। कथाओं में प्राप्त उल्लेखों से वयस्क विवाह होने की जानकारी होती है | उदारवादी दृष्टिकोण के परिणाम स्वरुप वर्ण जाति एंव धर्म का बन्धन नहीं था। सामान्यतया समान कुल वाले परिवारों के बीच विवाह सम्बन्ध होते थे / जैन सूत्रों में विवाह के तीन प्रकार - आयोजित, स्वयंवर एंव गान्धर्व विवाह के उल्लेख मिलते है। अपहरण विवाह भी विवाह का एक प्रकार था / मौन रहना विवाह की स्वीकृति मानी जाती थी। जैनागमों में वर्णित स्वयंवरों के दृश्य इस बात के प्रमाण है कि कन्या अपना वर चुनने में स्वतन्त्र थी। स्वयंवर मण्डप में कन्या को आमन्त्रितों का पूर्ण परिचय करा दिया जाता था। स्वयंवर विवाह में कोई विशिष्ट शर्त-गतियुद्ध, जय, बेधन इत्यादि रखी जाती थी। एक विवाह का आदर्श होते हुए भी बहुपत्नी विवाह प्रचलित थे। सामन्तवादी युग के वातावरण से परिपूर्ण ये जैन कथाएँ नरपतियों की विलासिता की और संकेत करती हैं। ये वैवाहिक बन्धनों को तोड़कर म्लेच्छों की कन्याओं को वरणकर काम पिपासा शान्त करते थे। अनुलोम विवाहों को समाज में मान्यता प्राप्त थी। आमोद-प्रमोद धार्मिक कृत्यों के समान ही आमोद प्रमोद को जैन समाज में महत्वपूर्ण स्थान प्राप्त था। जुआ एंव शिकार मनोरंजन के प्रमुख साधन थे। मनोविनोदार्थ अनेक प्रकार के खेल खेलने, नाटक देखने, जलकीड़ा करने, बसन्ताादि उत्सव मनाने, नृत्यगाान करने आदि सामूहिक कार्यक्रम सम्पादन करने की जानकारी होती नारी की स्थिति यद्यपि जैन संस्कृति निवृत्ति का मार्ग प्रशस्त करती है किन्तु फिर भी उसमें सांसारिक व्यवस्था को भी स्थान दिया गया है। स्त्रियों के उदात्त प्रेम के उल्लेख मिलते हैं" / सन्तान प्राप्ति के लिए वे इन्द्र, स्कन्द, नाग एंव यक्ष आदि देवी देवताओं की उपासना करती थी | शिक्षा के क्षेत्र में भी स्त्रियों के अग्रसर रहने के उल्लेख मिलते हैं। वे अनेक प्रकार की विद्याओं का उपार्जन करके धर्म प्रचार करती।
SR No.032855
Book TitleJain Sahitya ka Samajshastriya Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUsha Agarwal
PublisherClassical Publishing Company
Publication Year2002
Total Pages268
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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