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________________ पुराण 87 ___महाव्रतों, समितियों एंव गुप्तियों के साथ ही जैन भिक्षुओं का अन्यान्य नियमों . का पालन करना आवश्यक था / و به سه स्नान न करना, गृहस्थ के घर जाने पर गृहस्थ स्वयं उनका शरीर पोंछ देते हैं। दन्तमंजन न करना। भोजन के समय ही दन्तशुद्धि एंव मुखशुद्धि करते है। पृथ्वी पर सोना एंव खड़े होकर भोजन करना, वह भी सूर्य अस्त होने से पूर्व एक बार। नग्न रहना। केशलोंच करना 4, 5. तप एंव योग पौराणिक साहित्य से कठोर तप द्वारा ही मोक्ष एंव केवल ज्ञान प्राप्त करने की जानकारी होती है४१ | अपभ्रंश पउम चरिउ में चौबीस तीर्थकरों द्वारा विभिन्न वृक्षों के नीचे कठोर तप द्वारा केवल ज्ञान प्राप्त करने का उल्लेख प्राप्त होता है४२ / पुराणों में अहिंसा, संयम एंव तप रुप धर्म को ही उत्कृष्ट मंगल बताया गया है। मुनियों का तप अन्तरंग एंव बहिरंग के भेद से बारह प्रकार का बतलाया गया है। आभ्यन्तर (अन्तरंग) तप२४३ मन का नियमन करने के लिए जैन भिक्षु अन्तरंग तपों को अपनाते / प्रायश्चित, विनय, वेयावृत्य, स्वाध्याय, व्युत्सर्ग एंव ध्यान आभ्यन्तर तप के प्रकार है। बहिरंग तप२४४ मुनि आचार का सम्यक् रुप से पालन करने के लिए बहिरंग तप किया जाता। उपवास, अवमौदर्य, वृत्ति परिसंख्यान, रसपरित्याग विविक्त शय्यासन एंव कायक्लेश बहिरंग तप के प्रकार हैं। तप के द्वारा ही अणिमा, महिमा, गरिमा, लधिमा, प्राप्ति, प्राकाम्य इंशिख एंव वशित्व इन आठ प्रकार की सिद्धियों की प्राप्ति सम्भव है२४५ | बारहवें बलभद्र एंव बसुदेव द्वारा बारह अनुप्रेक्षाओं एंव बाइस परीषहों को जीतकर कठोर तप करने के उल्लेख प्राप्त होते हैं। आदि पुराण में इन बारह तपों के अतिरिक्त तप्तधोर, महाधोर, उग्र, महाउग्र एंव दीप्त इत्यादि तपों का भी उल्लेख मिलता है२४६ | जैन परम्परा में कमों के संवर तथा निर्जरा को योग कहा जाता है। योग में मन, वाणी एंव कर्म से शारीरिक एंव लौकिक सभी मनोविकारों को रोककर
SR No.032855
Book TitleJain Sahitya ka Samajshastriya Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUsha Agarwal
PublisherClassical Publishing Company
Publication Year2002
Total Pages268
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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