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________________ ज्ञानानन्द श्रावकाचार 50 (हाथ) तो नीचे तथा दातार के हाथ ऊपर, ऐसी शोभा उत्कृष्ट पात्र को दान के अतिरिक्त अन्य कौन से कार्य से हो सकती है। ____ यदि वे मुनिराज ऋद्धिधारी हों तो पांच आश्चर्य होते हैं उनका वर्णन - (1) रत्न वृष्टि (2) पुष्पवृष्टि (3) गंदोदक वृष्टि (4) देव दुंदुभी अर्थात (देव पुनीत) वाध्यों का बजना (5) देवों के द्वारा जय-जयकार / ये पांच आश्चर्यकारी बातें होती हैं, अत: इन्हें पंचाश्चर्य कहा जाता है। ____ उस दिन उस चार हाथ की रसोई में बने नाना प्रकार के पकवान एवं सब्जियां अमृतमय तथा अटूट हो जाते हैं, उस दिन उस रसोई-शाला में चक्रवर्ती की सेना भी एक साथ अलग-अलग बैठकर भोजन करे तो भी स्थान कम नहीं पडता तथा न ही भोजन कम पडता है, ऐसा आश्चर्य होता है / (वह दातार) नगर के लोगों के साथ बडे-बडे राजाओं तथा इन्द्र आदि देवों द्वारा पूज्य, एवं प्रशंसा के योग्य होता है तथा उसके द्वारा दिये गये दान की अनुमोदना कर बहुत से जीव महापुण्य उपार्जित कर परम्परा से मोक्ष को प्राप्त करते हैं। इस ही प्रकार सम्यग्दृष्टि दातार तीन प्रकार के पात्रों को दान देने पर स्वर्ग में ही जाते हैं / यदि मिथ्यादृष्टि दान देते हैं तो जघन्य, मध्यम, उत्कृष्ट भोगभूमि जाकर फिर मोक्ष प्राप्त करते हैं / पात्र-दान लोक में तथा परलोक में इसप्रकार के फल देने वाला है। दुःखित भूखे जीवों को करुणा करके दान दिया जाने पर भी महापुण्य होता है / सबसे बडा सुमेरु (पर्वत) है, उससे भी बडा जम्बूद्वीप है, उससे भी बडा तीन लोक है, तथा उससे भी बड़ा लोकालोक प्रमाण आकाश द्रव्य है / पर वे तो कुछ देते नहीं हैं, अत: इनकी तो शोभा नहीं है / उससे भी बडा दातार है, उससे भी बडा अयाची (याचना न करने वाला) त्यागी पुरुष है / फिर भी कोई अज्ञानी, मूर्ख, कुबुद्धि , अपघाती (दान का ) ऐसा फल जानकर भी दान नहीं करे तो उसके लोभ का अथवा अज्ञान का क्या पूछना (कहना) ?
SR No.032848
Book TitleGyananand Shravakachar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRaimalla Bramhachari
PublisherAkhil Bharatvarshiya Digambar Jain Vidwat Parishad Trust
Publication Year2010
Total Pages330
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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