SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 47
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 32 ज्ञानानन्द श्रावकाचार आदि / मांस के अतिचार - चमडे के सम्पर्क में आये हींग, तेल, घी, जल इत्यादि (का सेवन) करना / शहद के अतिचार :- फूलों का भक्षण एवं शहद से बनी औषध, अंजन आदि का उपयोग करना इत्यादि / पांच उदम्बर के अतिचार - अनजाने फल का भक्षण करना, बिना शुद्ध किये फल का भक्षण करना, ऐसा जानना / [ नोट :- यहां दि. जैन मुमुक्षु मंडल भोपाल से सन 1987 में प्रकाशित ज्ञानानन्द श्रावकाचार में अतिचारों में “अनजाने फल का भक्षण न करना" आदि शब्द लिखे हैं, पर इनका भक्षण करना आदि अतिचार लगाना है, न कि न करना अतिचार है / अत: ऐसी चीजों के भक्षण को अतिचार लिखा है, न करने को नहीं।] ___ आगे सात व्यसनों के अतिचार कहते हैं - प्रथम जुआ का अतिचार - हार जीत करना (शर्त लगाना) / मांस - मदिरा के अतिचार पहले कह ही चुके हैं / परस्त्री के अतिचार - कुमारी लडकी के संग क्रीडा करना तथा अकेली स्त्री से एकान्त में बात करना इत्यादि / वेश्या गमन के अतिचार - नृत्य आदि, वाध्य यंत्र गान आदि को आसक्ति पूर्वक देखना, सुनना तथा वेश्या रमण, नपुंसक पुरुषों से मेल रखना, वेश्या के घर जाना आदि / शिकार के अतिचार - काष्ट, पाषाण, मिट्टी, धातु एवं चित्रों में बने हुये घोडे, हाथी, मनुष्य आदि जीवों के आकारों का घात करना, आदि / __ चोरी के अतिचार - पराये (दूसरे का) धन ले लेना, जबरदस्ती छीन लेना, कम मूल्य देकर अधिक मूल्य की वस्तु खरीदना, तौल में कम वस्तु देना, अधिक लेना, (किसी की) धरोहर को रख लेना (वापस न करना), भोले मनुष्य का माल.ठग लेना इत्यादि / इसप्रकार सातों व्यसनों के अतिचार जानना / इन अतिचारों को छोडे वह प्रथम प्रतिमा का धारक श्रावक होता है, तथा अतिचारों को न पाले (छोडे) उसे पाक्षिक श्रावक जानना /
SR No.032848
Book TitleGyananand Shravakachar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRaimalla Bramhachari
PublisherAkhil Bharatvarshiya Digambar Jain Vidwat Parishad Trust
Publication Year2010
Total Pages330
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy