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________________ परिशिष्ठ-1 299 दस व्यक्ति धर्मबुद्धि वाले वहां थे / उनसे सदैव चर्चा होती थी, नाना प्रकार के शास्त्रों का अवलोकन होता था / अतः हमने उसके निमित्त से सर्वज्ञ वीतराग का सत्य स्वरूप जाना तथा उसके वचनों के अनुसार सर्व तत्वों का यथार्थ स्वरूप जाना। __ थोडे ही दिनों में भेद-विज्ञान हुआ, जैसे सोता हुआ व्यक्ति जाग उठता है वैसे मैं अनादि काल का मोह निद्रा में सो रहा था, वह जिनवाणी के प्रसाद से एवं नीलापति आदि साधर्मियों के निमित्त से सम्यग्ज्ञानरूपी दिवस का उदय हुआ। अपना स्वरूप आदि साक्षात ज्ञानानन्द सिद्ध सदृश्य जाना तथा सब चरित्र (कार्य) पुदगल द्रव्य का जाना / रागादि भावों की निज स्वरूप से भिन्नता अथवा अभिन्नता भली प्रकार जानी / इसप्रकार हमने विशेष तत्वज्ञान के जानपने सहित आत्म रूप प्रवर्तन किया। वैराग्य परिणामों के बल से तीन प्रकार का त्याग - (1) सर्व हरित काय का त्याग (2) रात्रि में अन्न जल का त्याग (3) आयु पर्यन्त विवाह करने का त्याग किया। ऐसे होते हुये सात वर्ष पर्यन्त वहां-रहे / फिर राणाजी के उदयपुर में दौलतराम तेरापंथी, जयपुर के जयसिंह राजा के वकील से, धर्म के लिये मिले / उन्हें संस्कृत का अच्छा ज्ञान था / बाल अवस्था से लेकर वृद्ध अवस्था तक सदैव स्वाध्याय के कारण सौ-पचास शास्त्रों का अवलोकन किया था / वहां दौलतराम के निमित्त से दस-बीस साधर्मी भाई तथा दस-बीस बहिनों सहित सहेली (गोष्ठी) का बनाव बनता था / उनका अवलोकन करके वापस साहिपुर लौटे / फिर कुछ दिन बाद जयपुर के साहुकार के पुत्र टोडरमल, जिन्हें विशेष ज्ञान था, उनसे मिलने के लिये जयपुर गये। यहां उन्हें नहीं पाया तथा एक बंसीधर जो किंचित संयम के धारक थे, विशेष व्याकरण आदि एवं जैन मत के शास्त्रों के पाठी थे, जिनके पास सौ-पचास पुरुष, स्त्रियां, छात्र व्याकरण, छंद, अलंकार, काव्य पढ़ते थे तथा चर्चा करते थे, उनसे मिले /
SR No.032848
Book TitleGyananand Shravakachar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRaimalla Bramhachari
PublisherAkhil Bharatvarshiya Digambar Jain Vidwat Parishad Trust
Publication Year2010
Total Pages330
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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