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________________ 281 कुदेवादि का स्वरूप विमानों की भूमि में नाना प्रकार की पन्ने के सदृश्य हरियाली दूब होती है / नाना प्रकार के वन, बावडी, नदी, तालाब, कुये, पर्वत आदि अनेक प्रकार की शोभा पाई जाती है / कहीं पुष्प वाटिका शोभित है, कहीं नव निधियां अथवा चिंतामणी रत्न शोभित हैं। कहीं पन्ने, माणिक, हीरे आदि नाना प्रकार के रत्नों के पुंज शोभित हैं / इस लोक में जैसे बडे-बडे मंडलेश्वर राजा राज्य करते हैं उसीप्रकार उन विमानों में ज्योतिष देव राज्य करते हैं / उनका पुण्य चक्रवर्ती से अनन्त गुणा अधिक है, जिसका वर्णन कहां तक करें। ये ज्योतिष देव चयकर (वहां से मर कर) तिर्यन्च गति में आ उत्पन्न होते हैं / उन्हें तारने में कोई समर्थ नहीं है / जो स्वयं ही काल के वश हो वह अन्यों को कैसे तार सकता है ? जगत के जीव भ्रम बुद्धि से ऐसा मानते हैं कि सूर्य तथा तारों के विमान आकाश में गमन करते हैं, उन विमानों को ही वे चन्द्रमा, सूर्य कहते हैं तथा इन्हें गाडी के पहिये मानते हैं / तारों को कुंडा (एक प्रकार का पात्र) मानते हैं / इन चन्द्रमा, सूर्य की मान्यता करते हैं तथा पूजा करते हैं कि ये चन्द्रमा, सूर्य हमें सहायता करेंगे। ___अज्ञानी जीवों को ऐसा विचार नहीं है कि दस पांच कागजों के पतंग सौ-दो सौ हाथ ऊंचाई में आकाश में उडती हैं, वे भी तनिक कौये जैसी दिखती हैं / तो सूर्य का विमान सोलह लाख कोस ऊंचाई पर है तथा चन्द्रमा का विमान जो सतरह लाख साठ हजार कोस की ऊंचाई पर हैं, तारों के विमान पन्द्रह लाख अस्सी हजार कोस की ऊंचाई पर हैं / ये गाडी के पहिये के समान हैं तथा इतनी ऊंचाई पर हैं वे कैसे भला करेंगे ? अन्य भी उदाहरण कहते हैं। देखो दो तीन कोस चौडा तथा पांच-सात कोस ऊंचा पर्वत जो पृथ्वी पर चौडाई लिये स्पष्ट स्थित है / वह पर्वत दस-बीस कोस दूरी तक तो नजर आता है पर ज्यादा दूर से दिखाई नहीं पडता है / इन्द्रिय ज्ञान की ऐसी ही हीन शक्ति है जिससे दूर की बहुत सी (सभी नहीं) वस्तु निर्मल
SR No.032848
Book TitleGyananand Shravakachar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRaimalla Bramhachari
PublisherAkhil Bharatvarshiya Digambar Jain Vidwat Parishad Trust
Publication Year2010
Total Pages330
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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