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________________ ज्ञानानन्द श्रावकाचार एक समय में युगपत जानते हैं / सहजानन्द हैं, सर्व कल्याण के पुंज हैं, तीन लोकों द्वारा पूज्य हैं, उनका सेवन करने से सर्व विघ्न दूर हो जाते हैं। श्री तीर्थंकर देव (मुनि पद की दीक्षा लेते समय) उनको नमस्कार करते हैं, इसलिये मैं भी बारम्बार दोनों हाथों को मस्तक से लगाकर नमस्कार करता हूँ। किसलिये नमस्कार करता हूँ ? उनके जैसे गुणों की प्राप्ति के लिये (नमस्कार करता हूँ)। सिद्ध भगवान और कैसे हैं ? देवाधिदेव हैं / यह देव संज्ञा सिद्ध भगवान को ही शोभित होती है / शेष चार परमेष्ठियों की 'गुरु' संज्ञा है / ___सिद्ध परमेष्ठि और कैसे हैं ? सर्व तत्वों को प्रकाशित करते हुये भी ज्ञेय रूप परिणमित नहीं होते हैं, अपने स्वभाव रूप ही रहते हैं / ज्ञेय को मात्र जानते ही हैं। कैसे जानते हैं ? जैसे ये समस्त ज्ञेय पदार्थ मानों शुद्ध ज्ञान में डूब गये हैं, या मानों प्रतिबिंबित हये हैं, या मानो ज्ञान में निर्माण किये (बनाये) गये हैं। सिद्ध महाराज और कैसे हैं ? शान्त रस से उनके (आत्मा के) असंख्यात प्रदेश भरे हैं तथा ज्ञान रस से आल्हादित हैं / शुद्धात्मा रूपी परमरस को ज्ञानांजुली में भर कर पीते हैं / सिद्ध और कैसे हैं ? जैसे चन्द्रमा के विमान से अमृत झरता है तथा अन्य लोगों को आल्हाद, आनन्द उत्पन्न करता है, आताप को दूर करता है उसीप्रकार श्री सिद्ध महाराज स्वयं तो ज्ञानामृत पीते हैं अथवा आचरते हैं एवं औरों को आल्हाद आनन्द उत्पन्न करते हैं / उनके नाम, स्तुति और ध्यान से जो भव्य जीव है, उनका आताप दूर हो जाता है, परिणाम शान्त हो जाते हैं तथा स्व-पर की शुद्धता होती है / उन्हें (भव्य जीवों को) निज स्वरूप की प्रतीति आ जाती है / ऐसे सिद्ध
SR No.032848
Book TitleGyananand Shravakachar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRaimalla Bramhachari
PublisherAkhil Bharatvarshiya Digambar Jain Vidwat Parishad Trust
Publication Year2010
Total Pages330
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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