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________________ 193 सम्यग्चारित्र याद आती है तथा उसे देखने से ज्ञान-वैराग्य में वृद्धि होती है / ज्ञानवैराग्य ही निश्चय मोक्षमार्ग है / __शास्त्र की विनय :- शास्त्र हैं वे भी अचेतन हैं; किन्तु इनके अवलोकन (स्वाध्याय से) प्रत्यक्ष ज्ञान-वैराग्य की वृद्धि होती देखी जाती है / जितने भी धर्म के अंग हैं वे सब शास्त्र से ही जाने जाते हैं, जानने पर हेय वस्तु का त्याग सहज ही होता है, उपादेय वस्तु का ग्रहण सहज ही रह जाता है / इन्हीं परिणामों से मोक्षमार्ग सधता है एवं मोक्षमार्ग से निर्वाण की प्राप्ति होती है / अत: यह बात सिद्ध हुई कि इष्ट अनिष्ट फल के लिये कारण शुद्ध अशुद्ध परिणाम ही हैं / शुद्ध-अशुद्ध परिणामों के लिये कारण अनेक प्रकार के ज्ञेय पदार्थ हैं / कारण के बिना तीन काल में भी कार्य की सिद्धि नहीं होती, जैसा कारण मिलता है वैसा ही कार्य होता है / अतः प्रतिमाजी का पूजन-स्मरण, ध्यान, अभिषेक आदि उत्सव परम महिमा सहित विशेष रूप से करना योग्य है / जो कोई मूर्ख, अज्ञानी अवज्ञा करता है वह अनन्त संसार में भ्रमण करता है। चार निकाय के देवों का तो मुख्य धर्म श्रीजी की पूजा करना ही है / अत: मेरा भी सर्व प्रकार से बारंबार त्रिलोक के जिनबिम्बों को नमस्कार हो, भव-भव में मुझे इन्हीं की शरण हो, इन्हीं की सेवा प्राप्त हो / इनकी सेवा के बिना एक समय भी न जावे / मैने तो अनादि काल से संसार में भ्रमण करते महाभाग्य के उदय से, काल लब्धि के योग से यह निधि पाई है / जैसे दीर्घ काल का दरिद्र चिन्तामणि रत्न पाकर सुखी होता है वैसे ही मैं श्री जिनधर्म पाकर सुखी हुआ हूं। अब मोक्ष प्राप्ति तक यह जिनधर्म मेरे हृदय में एक समय मात्र भी अन्तर पडे बिना सदैव रहे / मेरी यह प्रार्थना श्री जिनबिम्ब पूर्ण करें / बहुत क्या प्रार्थना करूं, दयालु पुरुष थोडी प्रार्थना को ही बहुत मानते हैं / इति जिन-दर्शन संपूर्णम् -.
SR No.032848
Book TitleGyananand Shravakachar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRaimalla Bramhachari
PublisherAkhil Bharatvarshiya Digambar Jain Vidwat Parishad Trust
Publication Year2010
Total Pages330
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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