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________________ 130 ज्ञानानन्द श्रावकाचार इसप्रकार उनके शास्त्रों में पूर्वापर दोष हैं, उन शास्त्रों को प्रमाणिक कैसे माना जा सकता है ? तथा जब वे प्रमाणिक ही नहीं हैं तो वे सर्वज्ञ का वचन (के वचनानुसार) कैसे हो सकते हैं ? अत: नियम से (वास्तव में) तथा अनुमान से भी यह जाना जाता है कि ये शास्त्र कल्पित हैं, कषायी पुरुषों के द्वारा अपने स्वार्थो के पोषण के लिये रचे गये हैं। फिर वे पूछते हैं - स्त्री को मोक्ष नहीं होता तो फिर नवमें गुणस्थान तक तीनों वेदों का उदय कैसे कहा है ? उसका उत्तर - यह कथन तो भावों की अपेक्षा है। भाव तो मोह कर्म के उदय से होते हैं तथा द्रव्य पुरुष-स्त्री-नपुंसक के चिन्ह नाम कर्म के उदय से होते हैं / तीनों भाव वेद वालों को तो हम भी मोक्ष होना मानते हैं पर द्रव्य स्त्री-नपुंसक को मोक्ष होता नहीं, उनकी सामर्थ्य तो केवल पंचम गुणस्थान तक ही चढने की है, आगे चढने की नहीं यह नियम है / द्रव्य पुरुष को ही मोक्ष होता है तथा एकेन्द्रिय से लेकर असैनी पंचेन्द्रिय तक के जीव तथा सम्मूर्छन, देव, नारकी, युगलियाओं का तो जैसा द्रव्य चिन्ह होता है वैसा ही भाव वेद पाया जाता है परन्तु सैनी, गर्भज, पंचेन्द्रिय मनुष्य एवं तिर्यन्चों को द्रव्य चिन्ह के अनुसार ही भाव वेद का अथवा अन्य (भाव) वेद का भी उदय हो सकता है, ऐसा 'गोम्मटसार जीव' ग्रन्थ में लिखा है। जैसे उदाहरण कहते हैं - द्रव्य से तो पुरुष हो उसको भी पुरुष से ही भोग करने की अभिलाषा देखने में आती है, अत: उसे भाव स्त्री वेद होने पर भी पुरुष वेदी कहा जाता है / ___एक ही काल में पुरुष -स्त्री दोनों से भोग करने की अभिलाषा हो उसे भाव नपुंसक वेद है तथा द्रव्य पुरुष वेद है / इसप्रकार द्रव्य पुरुष वेदी को तीनों ही भाव वेदों से मोक्ष होता है / इसी ही प्रकार तीनों भाव वेदों का उदय द्रव्य स्त्री तथा द्रव्य नपुंसक को भी जानना, पर उन्हें अधिक से अधिक पंचम गुणस्थान ही हो सकता है, आगे नहीं / उन्हें ये (श्वेताम्बर) मोक्ष मानते हैं, यह उनका विरूद्धपना है / साथ ही दिगम्बर धर्म तथा
SR No.032848
Book TitleGyananand Shravakachar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRaimalla Bramhachari
PublisherAkhil Bharatvarshiya Digambar Jain Vidwat Parishad Trust
Publication Year2010
Total Pages330
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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