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________________ विभिन्न दोषों का स्वरूप 129 मिट्टी के भाजनों में रात्रि के समय पकायी गयी रसोई (भोजन का सामान) दीन पुरुष की तरह शूद्र के घर का भी ले आते हैं / ___ जैन धर्म के द्रोही, जैन धर्म की आज्ञा से रहित वे लोग अन्य याचकों के ही समान उन्हें भी अनादर से आहार देते हैं, सो ऐसे भोजन के रागी वे उसका भक्षण करने में अंश मात्र भी दोष नहीं मानते / वह भोजन कैसा है ? त्रस जीवों की राशि है तथा ऐसी ही जीवों की राशि वाली हलवाई की बनाई वस्तुओं, अथाणा (संभवतः मर्यादा से बाहर की) संधाणा (मुरब्बे), आचार, कांजी आदि महा अभक्ष्य वस्तुओं का भोजन करते हैं, उनमें होने वाली हिंसा का तो दोष गिनते नहीं, तथा उनको प्रासुक कहते हैं / वे प्रासुक कैसे हो सकती हैं ? यदि वे प्रासुक ही होती तो गृहस्थ पुरुष उनका त्याग क्यों करते ? इसप्रकार के रागी पुरुषों की विडम्बना कहां तक कहें ? चित्र में बनी स्त्री को पास में रखने में तो दोष गिनते हैं, पर सैंकडों स्त्रियों को सिखाने, पढाने, उपदेश देने, उनके संपर्क में रहने, उनका लालन-पालन करने, उनकी नब्ज (नाडी) देखने, नाडी देखने के बहाने उनका स्पर्श करने अथवा औषध, ज्योतिष, वैद्यक करके उनके मनोरथ सिद्ध कर बहुत द्रव्य (धन) का संग्रह करने, उनसे मनमाने विषयों का पोषण करने, स्त्री का सेवन करने, उसको गर्भ रह जाने पर गर्भ गिरवा देने वाले वे कहते हैं - हम यति हैं, हम साधु हैं, हमें पूजो / ऐसी साधना (आचरण) वाले संसार समुद्र से तारने में समर्थ कैसे हो सकते हैं ? पत्थर की नाव समुद्र में खुद ही डूबती है तो औरों को कैसे पार लगावेगी? स्त्रियों को भी प्रसन्न रखने के लिये उन्हें कपडों सहित गृहस्थपने में ही मोक्ष जा सकना प्रतिपादित किया तथा यह भी कहा कि वज्रऋषभनाराच संहनन के बिना मोक्ष नहीं होता परन्तु जब कर्मभूमि की स्त्रियों के तो अंत के तीन संहनन ही हैं, फिर स्त्री का मोक्ष जाना कैसे हो सकता है ?
SR No.032848
Book TitleGyananand Shravakachar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRaimalla Bramhachari
PublisherAkhil Bharatvarshiya Digambar Jain Vidwat Parishad Trust
Publication Year2010
Total Pages330
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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