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________________ विभिन्न दोषों का स्वरूप 127 काल में देव केवल बहत्तर युगलों को ही उडा कर ले जाते हैं, अधिक को नहीं ले जाते / चमडे से स्पर्शित पानी निदोष है / घी, पकवान अथवा सकरी रसोई (कच्चा-खाना) बासी भी पडा हो तो निदोष है / भगवान महावीर के माता-पिता ने भगवान के दीक्षा लेने से पूर्व ही अपनी पर्याय पूरी की एवं देव गति में गये। ____ बाहुबली का रूप मुगल (मुसलमान) जैसा था / साबुत (बिना कटे - पूर्ण) फलों को खाने में कोई भी दोष नहीं है / युगलिया परस्पर लडते हैं, कषाय करते हैं / त्रैसठ शलाका पुरुषों को निहार होना मानते हैं / इन्द्र चौसठ जाति के ही होते हैं एक सौ जाति के नहीं / यादवों ने मांस खाया था / मनुष्य मानुषोत्तर पर्वत से आगे भी जा सकता है / कामदेव चौबीस नहीं होते / देवता तीर्थंकरों के मृत शरीर के मुंह में से डाढ निकाल कर ले जाकर स्वर्ग में पूजा करते हैं / नाभिराजा और मरुदेवी युगलिया थे / नव ग्रैवियक के वासी देव अनुत्तरों तक भी जाते हैं / शिष्य आहार लाया, सर्व गुरुओं ने उसके पात्र में यूँका तथा शिष्य ने उसे गुरु की झूठन जानकर खाया उससे उसे केवलज्ञान हो गया। शास्त्र को वेष्ठन में बांध कर चौकेपाटे के नीचे धर देने अथवा शास्त्र को सर के नीचे रख कर (लगा कर) सो जाने पर भी यह कहना कि यह तो जड है, इसका क्या विनय करना ? ___प्रतिमाजी के लिये भी कहें कि यह जड है, इसे पूजने या नमस्कार करने से क्या फल देगी ? कुदेव आदि को पूजने में कोई बुराई नहीं है, यह तो गृहस्थपने का धर्म है / अन्य-जन को कहें धर्म के लिये अंश मात्र भी हिंसा नहीं करना चाहिये, परन्तु सैकडों स्त्री-पुरुषों को चर्तुमास के दिनों में कीचड आदि को रौंधते-रौंधते असंख्यात अनन्त स्थावर त्रस जीवों की हिंसा कराते हुये अपने पास बुलाना तथा नमस्कार कराना अथवा चलते हुये उल्टे जावें (जाने को कहना), (साधु यति) आते हों तो उनको पांच-सात कोस दूर तक सामने जाकर लावें (लाने का उपदेश देना ) / इत्यादि धर्म के नाम पर नाना प्रकार की हिंसा करते हैं पर उसका दोष नहीं
SR No.032848
Book TitleGyananand Shravakachar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRaimalla Bramhachari
PublisherAkhil Bharatvarshiya Digambar Jain Vidwat Parishad Trust
Publication Year2010
Total Pages330
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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