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________________ 116 ज्ञानानन्द श्रावकाचार उत्पत्ति देखने से संयम सहित जिनधर्म वैश्यों के घरों में रहेगा, क्षत्रिय व विप्र उससे विमुख होंगे (7) नाचते हुये भूत देखने से नीच देवों के मान होगा, जिनधर्म से अनुराग मंद होगा (8) चमकती अग्नि देखने से जिनधर्म कहीं-कहीं अल्प रहेगा, किसी समय बहुत घट जावेगा किसी समय थोडा बढ जावेगा, मिथ्यामत का बहुत लोग सेवन करेंगे (9) सूखे सरोवर में दक्षिण दिशा में थोडा जल देखने से धर्म दक्षिण दिशा में रहेगा, जहां-जहां तीर्थंकरों के पंचकल्याणक हुये हैं वहां-वहां धर्म का अभाव होगा / (10) स्वर्ण पात्र में स्वान को खीर खाते देखने से उत्तम जनों की लक्ष्मी का भोग नीच लोग करेंगे (11) हाथी के ऊपर बंदर बैठा देखने से नीच कुल के व्यक्ति राजा होंगे, क्षत्रिय कुल वाले उनकी सेवा करेंगे (12) मर्यादा का उल्लंघन करता समुद्र देखने से राजा नीति को छोडकर प्रजा को लूट कर खावेंगे (13) तरुण बैल रथ में जुते देखने से लोग तरुण अवस्था में तो धर्म का संयम का आदर करेंगे तथा वृद्धा अवस्था में शिथिल होंगे (14) ऊंट पर राजपुत्र को चढ़ा देखने से राजा जिनधर्म को छोडकर हिंसक मिथ्यामति होंगे (15) रत्नों की राशि को धूल से ढकी देखने से यति (साधुगण) परस्पर द्वेषी होगें (16) काले हाथियों का समूह लडते देखने से वर्षा समय-असमय थोडी-सी होगी, मनमाने (मनचाहेअनुकूल) समय पर मेघ नहीं बरसेंगे / इसप्रकार भद्रबाहु स्वामी ने निमित्त ज्ञान के बल से राजा चन्द्रगुप्त को अशुभ की सूचना देने वाले सोलह स्वप्नों का यथार्थ अर्थ कहा, जिससे राजा बहुत भयभीत हुआ / इसप्रकार से स्वप्नों का फल सभी मुनियों ने प्रकट रूप से जाना। ये ही सोलह स्वप्न चतुर्थ काल में भरत चक्रवर्ती को आये थे, उसने भी इनका फल भगवान आदिनाथ से पूछा था, तब श्री आदिनाथ भगवान की दिव्यध्वनि में ऐसा उपदेश हुआ था कि आगे पंचम काल आवेगा उसमें हुण्डावसर्पिणी के दोष से अनेक तरह की विपरीत बातें होंगी, जो इस भव में अथवा परभव में जीवों का महाद:ख के कारण बनेंगी।
SR No.032848
Book TitleGyananand Shravakachar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRaimalla Bramhachari
PublisherAkhil Bharatvarshiya Digambar Jain Vidwat Parishad Trust
Publication Year2010
Total Pages330
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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