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________________ विभिन्न दोषों का स्वरूप 93 त्रस जीवों की उत्पत्ति होती रहती है / रात्रि काल का अनछना जल अभक्ष्य होता है, अत: वैसे ही एक तो यह अनछने जल का दोष है तथा कांजी बनाने में छाछ में राई डाली जाती है, राई के निमित्त से छाछ में तत्काल त्रस जीवों की उत्पत्ति होती है, अत: छाछ तथा राई से बना रायता अभक्ष्य है। एक यह दोष तो है ही, फिर छाछ में भुजिये डाले जाते हैं जो द्विदल है / कच्ची छाछ, दो फाड हो जानेवाले अनाज तथा मुख की राल, इन तीनों का संयोग होने पर मुख में तत्काल बहुत त्रस जीव उत्पन्न होते हैं, इसप्रकार द्विदल का दोष भी आ जाता है / छाछ में बहुत सा पानी एवं नमक डलता है जिनका निमित्त पाकर शीघ्र ही त्रस जीवों की उत्पत्ति होती है, अत: एक दोष यह भी है। जैसे धोबी, रंगरेज, छींपा (कपडे छापने वाले) के बर्तन में जीव रहते हैं वैसे ही कांजी के जीव जानना / ज्यों-ज्यों कांजी अधिक दिन रहती है त्यों-त्यों उसका स्वाद अधिक होता जाता है / अज्ञानी जीव इन्द्रियों के (विषयों के) लोलुपी प्रसन्न होकर उसको खाते हैं, वे यह जानते नहीं कि यह स्वाद तो बहुत त्रस जीवों के मांस-कलेवर (शरीर) का है / अतः धिक्कार है ऐसे रागभाव को जिसके कारण ऐसी अभक्ष्य वस्तु का प्रयोग करते हैं / इसीप्रकार का दोष डोहा की राब (राबडी) का जानना / इसमें भी त्रस जीव बहुत उत्पन्न होते हैं / आचार मुरब्बे के दोष आगे अथाणा-संधाणा (आचार-मुरब्बे) लोंजी के दोष बताते हैं - नमक, घी, तेल का निमित्त पाकर नींबू, कैरी (कच्चा आम) आदि के आचार में दो चार वर्ष तक नमी मिटती नहीं है / उसमें नमक, घी, तेल का निमित्त पाकर अनेक त्रसजीव राशि उत्पन्न हो जाती है तथा उसी में वह त्रस राशि मरती भी है / ऐसा जन्म-मरण जब तक उसकी स्थिति रहती है, तब तक होता रहता है।
SR No.032848
Book TitleGyananand Shravakachar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRaimalla Bramhachari
PublisherAkhil Bharatvarshiya Digambar Jain Vidwat Parishad Trust
Publication Year2010
Total Pages330
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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