SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 58
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ श्री तेरहद्वीप पूजा विधान [49 courururururururururururununununununun रम्य देश शुभ सार मेरुकी पूरव दिश विषै। रूपाचल निरधार, तिन जिनमंदिरको ज॥२३॥ ॐ ह्रीं सुदर्शन मेरुके पूरव विदेह सम्बन्धी रम्य देश संस्थित रूपाचल पर सिद्धकूट जिनमंदिरेभ्यो॥१३॥ अर्घ // देश सुरम्या सार, मेरुकी पूरव दिश कहो। जहां बैताड़ निहार, श्रीजिन मंदिरको जजों॥२४॥ ___ॐ ह्रीं सुदर्शन मेरुके पूरव विदेह सम्बन्धी सुरम्या देश संस्थित रूपाचल पर सिद्धकूट जिनमंदिरेभ्यो॥१४॥ अर्घ // रमणी देश सुजान, पूरवदिश गिन मेरुतै। तहां रुपाचल मान, जिन मंदिर नित पूजिये॥२५॥ __ॐ ह्रीं सुदर्शन मेरुके पूरव विदेह सम्बन्धी रमणी देश संस्थित रूपाचल पर सिद्धकूट जिनमंदिरेभ्यो॥१५॥ अर्घ॥ मेरु सु पूरव जान, मंगलावती देश है। विजयारध परमान, श्रीजिन भवन सु पूजिये॥२६॥ ___ ॐ ह्रीं सुदर्शन मेरुके पूरव विदेह सम्बन्धी मंगलावती देश संस्थित रूपाचल पर सिद्धकूट जिनमंदिरेभ्यो॥१६॥ अर्घ // अथ जयमाला - दोहा मेरु सुदर्शन पूर्वदिश, षोडश देश विशाल। रुपाचल पर जिनभवन सुन तिनकी जयमाल॥२७॥ पद्धडी छन्द जै मेरु सुदर्शन है महान, सब गिरको भूप कहो वखान। तहां तीर्थंकरको न्हवन होय ताको वरणन वरने सु कोय। ता मेरु सु पूरव दिश विचार, जहां षोडश देश विदेह सार। तहां विजयारध सोलहसु जान, तिनपर जिनमंदिर शोभमान॥
SR No.032847
Book TitleTerah Dwip Puja Vidhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMulchand Kisandas Kapadia
PublisherDigambar Jain Pustakalay
Publication Year2000
Total Pages338
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy