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________________ 4] श्री तेरहद्वीप पूजा विधान ~~~~~~~~~~ ~~~~~~~~~ मेरु सुदर्शन पूर्व दिश देश पुष्कला नाम। विजयारधके शिखरपर, पूजों श्री जिन धाम॥१७॥ __ॐ ह्रीं सुदर्शन मेरुके पूरव विदेह सम्बन्धी पुष्कला नाम देश संस्थित रूपाचल पर सिद्धकूट जिनमंदिरेभ्यो॥७॥ अर्घ॥ सोरठा पुष्कलावती देश, मेरु पूर्व दिश जानिये। जिन मंदिर सु विशेष, विजयारध गिरपर जजों॥१८॥ ॐ ह्रीं सुदर्शन मेरुके पूरव विदेह सम्बन्धी पुष्कलावती देश संस्थित रूपाचल पर सिद्धकूट जिनमंदिरेभ्यो॥८॥ अर्घ॥ मेरु पूर्व दिश सार, वक्षा देश सुहावनो। तहां जिन भवन निहार रूपाचल पर पूजिये॥१९॥ ___ॐ ह्रीं सुदर्शन मेरुके पूरव विदेह सम्बन्धी वक्षा देश संस्थित रूपाचल पर सिद्धकूट जिनमंदिरेभ्यो॥९॥ अर्घ॥ देश सुवक्ष महान, गिनो मेरु पूरव दिशा। जिन मंदिर धर ध्यान, गिर वैताड शिखर जजों॥२०॥ ॐ ह्रीं सुदर्शन मेरुके पूरव विदेह सम्बन्धी सुवक्षा देश संस्थित रूपाचल पर सिद्धकूट जिनमंदिरेभ्यो॥१०॥ अर्घ॥ महावक्षा नाम देश पूर्व दिश मेरु तें। रूपाचल जिन धाम, आठ दरव पूजों सदा॥२१॥ ॐ ह्रीं सुदर्शन मेरुके पूरव विदेह सम्बन्धी महावक्षा देश संस्थित रूपाचल पर सिद्धकूट जिनमंदिरेभ्यो॥११॥ अर्घ // मेरु सुदर्शन जान, ताकी पूरव दिश कहो। वत्सकावती आन, रूपाचल जिनगृह जजों॥२२॥ ॐ ह्रीं सुदर्शन मेरुके पूरव विदेह सम्बन्धी वत्सकावती देश संस्थित रूपाचल पर सिद्धकूट जिनमंदिरेभ्यो॥१२॥ अर्घ //
SR No.032847
Book TitleTerah Dwip Puja Vidhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMulchand Kisandas Kapadia
PublisherDigambar Jain Pustakalay
Publication Year2000
Total Pages338
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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