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________________ श्री तेरहद्वीप पूजा विधान [31 जै इन्द्र सु ढारत चमर आय, जै भामंडल द्युति रही छाय। जै तीन क्षत्र सोहैं अनूप, यह अतिशय श्री जिनराज भूप॥ जै सुरपति अर सुर सूरी आन, जिनराज सुपूजत हरष ठान। बहु पुन्य बढ़ावत करत गान,बाजत सब साज समाज जान॥ जै द्रुम द्रुम द्रुम बाजत मृदंग, इन्द्रानी इन्द्र नचैं जु संग। जै छम छम छम धुंघरू बजंत, जिनराज सुगुण गावैं अनंत॥ ताथेइ थेइ थेइ धुन रही पुर, बन रहो झुरमुठ जिन हजूर। हैं जन्म सुफल तिनके सुसार, देखत जु सबै नैनन निहार // घत्ता-दोहा यह गजदन्तनकी बनी, पूजा सरस विशाल। भविजन कंठ सुहावनी, लाल रची जयमाल॥२४॥ इति आरती अथाशीर्वादः--कुसुमलता मध्यलोक जिन भवन अकीर्तम, ताको पाठ पढे मन लाय। जाके पुन्यतनी अति महिमा, वरणनको कर सकै बनाय॥ ताके पुत्र पौत्र अरू सम्पति, बाढै अधिक सरस सुखदाय। यह भवजस परभव सुखदाई,सुरनर पदले शिवपुरजाय॥२५॥ इत्याशीर्वादः। इति श्री सुदर्शनमेरु सम्बन्धी चारों विदिशा मध्ये चार गजदंत पर सिद्धकूट जिनमंदिर पूजा सम्पूर्णम्।
SR No.032847
Book TitleTerah Dwip Puja Vidhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMulchand Kisandas Kapadia
PublisherDigambar Jain Pustakalay
Publication Year2000
Total Pages338
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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