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________________ 30] श्री तेरहद्वीप पूजा विधान ASSASSANSKSSSSSSSSSSSSKIN तहां जिनमंदिर बनोबिंब जिनराज विराजै। पूजत भव्य सुपाय परम आनंद उर छाजै॥१४॥ ॐ ह्रीं सुदर्शनमेरुकी वाइव दिशा मालवान नाम गजदन्त पर सिद्धकूट जिन-मंदिरेभ्यो॥३॥ अर्घ॥ मेरु सुदर्शन तनी दिशा ईशान जु सोहै। धरै सुगंध अपार गन्धमादन मन मोहै। है जगदन्त सुनाम तास पर मंदिर जानो। पूजत श्री जिनबिम्ब परम आनन्द उर आनो॥१५॥ ॐ ह्रीं सुदर्शनमेरुकी इशान दिशा गंधमादन नाम गजदन्त पर सिद्धकूट जिन-मंदिरेभ्यो॥४॥ अर्घ॥ अथ जयमाला प्रारम्भ-दोहा गजदंतन पर जिन भवन, बने सु परम विशाल। सुर खग मिल पूजत सदा, अब सुनिये जयमाल // 16 // पद्धडी छन्द जै मेरु सुदर्शन स्वयं सिद्ध, ताकि चारों विदिशा प्रसिद्ध। तहां हस्ती दंत रचे बनाय, गिर निषध नीलसो लगे जाय॥ तिनपर जिन मंदिर कहे जान, है रतनमई भाषौं पुरान। तहां वेदी मध्य रची सुजान, सोहै कटनी तिनों महान॥ जै सिंहासन द्युति है रिशाल, तापर सु कमल शोभे विशाल। जहां श्रीजिनबिंब विराजमान,सतआठअधिक प्रतिमा प्रमान॥
SR No.032847
Book TitleTerah Dwip Puja Vidhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMulchand Kisandas Kapadia
PublisherDigambar Jain Pustakalay
Publication Year2000
Total Pages338
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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