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________________ श्री तेरहद्वीप पूजा विधान [17 चाल छन्द करपूर सुकेसर सार, चन्दन सुखकारी, पूजो श्री गुण निहार, आनंद मन धारी, सब लोकालोक प्रकाश, केवलज्ञान जगो। यह ज्ञान सुगुण मनभाष, निज रस मांहि पगो।ॐ ह्री. चंदनं // मुक्ताफलकी उनमान, अक्षत धोय धरे, अक्षयपद पावत जान, पुन्य भंडार भरे, जगमें सु पदारथ सार, ते सब दरसावै। सो सम्यक्दर्शन धार, यह गुण मन भावै।ॐ ह्रीं. अक्षतं॥ सुन्दर सुगुलाब अनूप, फूल अनेक कहे, श्रीसिद्ध सुपूजत भूप, बहुविधि पुन्यलहे, तहां वीर्य अनंतो सार, यह गुण मन आनो। संसार-समुद्रते पार,कारक, प्रभु जानो।ॐ ह्रीं. पुष्पं // फेनी गोझा पकवान, मोदक सरस बने, पूजो श्री सिद्ध महान, भूखबिथा जु हने, झलकै सब एकहि बार ज्ञेय कहैं जितने। यह सूक्षमता गुण सार, सिद्धनके तितने।ॐ ह्रीं. नैवेद्यं // दीपककी जोत जगाय,सिद्धनको पूजो,करआरति सन्मुख जाय, निमभयपद हुजो, कछु घाट न बाट प्रमाण गुरुलघु गुण राखो। हम सीस नवावत आन, तुम गुण मुख भाखो।ॐ ह्री. दीपं // चरधूपसुदसविधलाय,दशदिशगंध धरै,वसुकर्मलजावत जाय, मानो नृत्य करै, इक सिद्धमें सिद्ध अनन्त सत्ता सब पावै। यह अवगाहन गुण सन्त सिद्धनकै गावै।ॐ ह्रीं. धूपं //
SR No.032847
Book TitleTerah Dwip Puja Vidhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMulchand Kisandas Kapadia
PublisherDigambar Jain Pustakalay
Publication Year2000
Total Pages338
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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