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________________ 16 ] श्री तेरहद्वीप पूजा विधान SSSSSSSSSSSSSFarsrarSrNNE अथ तेरहद्वीप संबंधी चारसौ अट्ठावन जिन मंदिरजीकी पूजन प्रथम श्री सिद्धपरमेष्ठीकी पूजन अथ स्थापना (छप्पय छन्द) स्वयं सिद्ध जिनभवन रतनमई बिंब बिराजै। नमत सुरासुर इन्द्र दरश लख रवि शशि लाजै॥ चारशतक पंचासआठ भुविलोक बताए। जिन पद पूजन हेत भाव घर मंगल गाए॥ मंगलमई मंगलकरण शिवपददायक जानके। आह्वानन करके जजू सिद्ध सकल उर आनकै // 1 // ॐ ह्रीं अनंतगुणबिराजमान श्रीसिद्धपरमेष्ठिन् अत्रावतरावतर संवौषट् आह्वाननं। अत्र तिष्ठ तिष्ठ ठः ठः स्थापनं। अत्र मम सन्निहितो भव भव वषट् सन्निधिकरण स्थापनं। अथाष्टकं - चाल। उज्जल जल शीतल लाय, जिनगुण गावत हैं। सब सिद्धनको सु चढाय, पुन्य बढावत हैं। सम्यक् सुक्षायक जान, यह गुण पावत हैं। पूजों श्री सिद्ध महान, बल बल जीवत हैं॥२॥ ॐ ह्रीं सिद्धपरमेष्ठिभ्यो। श्री सुमत्तः ॥१॥णाणः // 2 // दंसणः // 3 // वीर्य // 4 // सुहमत्तहेवः // 5 // अवगाहनः // 6 // अगुरुलघुः // 7 // अव्वाबाधा // 8 // अष्टगुणयुक्तिसिद्धेभ्यो जलं।
SR No.032847
Book TitleTerah Dwip Puja Vidhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMulchand Kisandas Kapadia
PublisherDigambar Jain Pustakalay
Publication Year2000
Total Pages338
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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