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________________ श्री तेरहद्वीप पूजा विधान [241 SarararaharsarSararaNararararera मेरु विद्युन्माली सोहनो, दिश ईशान सरस मन मोहनो। गंधमादन है गजदंत जू, जिनभवन पुंज भवि संत जू॥ ॐ ह्रीं विद्युन्माली मेरुके ईशान दिश गंधमादन नाम गजदन्त पर सिद्धकूट जिनमंदिरेभ्यो॥४॥ अर्घ // अथ जयमाला-दोहा विद्युन्माली मेरूकी, विदिशा मांहि विशाल। गजदंत पर जिनभवन, तिनकी सुन जयमाल // 15 // पद्धडी छन्द जै पुष्करार्घ वर दीप सार, ताकी पश्चिम दिशमें निहार। जै विद्युन्माली मेरु जान, कंचन द्युति मई शोभै महान॥ उन्नत जोजन अस्सी हजार, अर चार सहस अधिके विचार। जै ताकी विदिशा चार जान, चारों गजदंत कहें पुरान॥ जैतापर जिन मंदिर रिशाल, तहां रतनमई प्रतिमा विशाल। सतआठ अधिक सुर रमत आय,पद्मासन छविवरनी न जाय॥ सब जुदे जुदे दर जिनेश, यह अतिशय लख हरर्षे सुरेश। तव सुरपति नैन किये हजार, नहीं तृप्त होय फिर२ निहार॥ जै वसुविध दर्व लिये विशाल, जिनराज चरन पूजत त्रिकाल। सब विद्याधरके ईश आय, जिन चरण कमल पर शीष नाय॥ सुर नृत्य करत संगीत सार, जै नन्द वृद्ध भाषत संभार। जै सुर खेचर तिय करत गान, इंद्रानी हंस तोरत जु तान॥ यह विध सुरखग कौतुक कराय,हम शक्तिहीन पहुंचो न जाय। अपने घर पूजत श्री जिनंद, लख दर्श लाल पायो अनंद।
SR No.032847
Book TitleTerah Dwip Puja Vidhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMulchand Kisandas Kapadia
PublisherDigambar Jain Pustakalay
Publication Year2000
Total Pages338
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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