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________________ श्री तेरहद्वीप पूजा विधान [231 2222222222222222222 पद्धडी छन्द जै सुर विद्याधर सबै आय, जिनराज सु पूजा करत जाय। जिनगुण गावैं मन हरष लाय, जै नृत्य करैं बाजे बजाय॥ जै थेई थेई थेई धुन रही पूर, जग तारक जिनवरके हजूर। जै करत विनती बार बार जै जै प्रभु हमको तार तार // घत्ता-दोहा षट् कुलगिरपर जिनभवन, तहां श्री जिनवर देव। जो पूर्जे मन लायके, सुख पावै स्वयमेव // 27 // इति जयमाल। अथाशीर्वादः कुसुमलता छन्द मध्यलोक जिन भवन अकीर्तम, ताको पाठ पढै मन लाय। जाके पुन्य तनी अति महिमा, वरणन को कर सके बनाय॥ ताके पुत्र पौत्र अरु संपति, बालै अधिक सरस सुखदाय। यह भव जस पर भव सुखदाई, सुरनर पद ले शिवपुर जाय॥ इति आशीर्वादः इति श्री मंदिरमेरुके दक्षिण उत्तर दिश षट्कुलाचल पर्वतपर सिद्धकूट जिनमंदिर पूजा सम्पूर्णम्। इति श्री पुष्करार्द्ध द्वीपमध्ये पूरवदिश मंदिरमेरु सम्बन्धी अठत्तर जिनमंदिर शाश्वते विराजमान तिनकी पूजापाठ सम्पूर्णम्।
SR No.032847
Book TitleTerah Dwip Puja Vidhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMulchand Kisandas Kapadia
PublisherDigambar Jain Pustakalay
Publication Year2000
Total Pages338
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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