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________________ 230] श्री तेरहद्वीप पूजा विधान សធផលជលផលផនផល दोहा मंदिरगिरिके जानिये, षट्कुल गिर सु विशाल। पूजा कर मन लायकै, अब वरनूं जयमाल॥२१॥ चाल-छन्द पुष्करार्ध वर द्वीपमें जग सार हो, पूरव दिश सु महान। मंदिरमेरु सुहावनो जग सार हो, कंचन वरन सु जान॥ जान कंचन वरन गिरपर, चार वन चहुँदिश वहे। जिनभवन सोलह स्वयं सिद्ध, अनादि रचना बन रहे॥ जोजन चौरासी सहस उन्नत, शिखर वन पांडुक जहां। जिनराज जन्माभिषेक मंगल, अमर खग पूर्णं तहां॥ ताकी दिश दक्षिण कही जगसार हो, तीन कुलाचल सार। निषध जहां हिमवन पडों जग सार हो, है हिमवन सुखकार॥ सुखकार उत्तर दिश कुलाचल, तीन गिरवर सोहनो। वर नील दूजो रुक्म तीजो, शिखर नौ मन मोहनो॥ तसु तीस जिनमंदिर मनोहर, रतनजडित सु राजही। तहां रत्नबिंब जिनेशकी, शत आठ अधिक बिराजही॥ समोसरन रचना रची जग सार हो, मंगल दर्व विशाल। प्रातिहार्य वसु सोहनो जग सार हो, सुर पूज तिहुँकाल॥ तिहूँकाल सुर खग जजत हरषित, इन्द्र सहित उछाह सो। देवी शची जग खेचर तिया मिल, गीत गावें भावसों॥ जहां करत नृत सांगीत सुरपति, हावभाव विचित्रता। लखि लाल भाल नमाय भविजन, होय निज सुख भोगता॥
SR No.032847
Book TitleTerah Dwip Puja Vidhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMulchand Kisandas Kapadia
PublisherDigambar Jain Pustakalay
Publication Year2000
Total Pages338
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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