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________________ 212 ] श्री तेरहद्वीप पूजा विधान KarorarsanarararaNararararararararam ___अथाशीर्वादः कुसुमलता छन्द मध्यलोक जिन भवन अकीर्तम, ताको पाठ पढै मनलाय। जाके पुन्यतनी अति महिमा, वरणन को कर सकै बनाय॥ ताके पुत्र पौत्र अरू संपति, बालै अधिक सरस सुखदाय। यह भव जस पर भव सुखदाई, सुरनर पद ले शिवपुर जाय॥ // इति आशीर्वादः॥ इति श्री मंदिरमेरुके पूर्व विदेह सम्बन्धी षोडश रुपाचल पर सिद्धकूट जिनमंदिर पूजा सम्पूर्णम् / अथ मंदिरमेरुके पश्चिम विदेह संबंधी षोडश रूपाचल पर सिद्धकूट जिनमंदिर पूजा नं. 40 अथ स्थापना-जोगीरासा मंदिरमेरुतनी पश्चिम दिश, है विदेह सुखकारी। तहां पडो वैताड़ मनोहर, षोडश गिर मनहारी॥ ताके ऊपर श्री जिनमंदिर, बिंब जिनेश्वर सोहैं। तिनकी आह्वानन विध करके, पूजत सुरनर मोहैं। ॐ ह्रीं मंदिरमेरुके पश्चिम विदेह सम्बन्धी षोड़श रूपाचल पर सिद्धकूट जिनमंदिरेभ्यो अत्रावतरावतर संवौषट् आह्वाननं, अत्र तिष्ठ तिष्ठ ठः ठः स्थापनं, अत्र मम सन्निहितो भव भव वषट् सन्निधिकरणम्, स्थापनम्। अथाष्टकं-कुसुमलता छन्द कंचन झारीमें उज्वल जल क्षीर वरन मन हरन सु आन। पूजत हम जिनराज चरणको, प्रभु गुण गावत मधुरी तान॥
SR No.032847
Book TitleTerah Dwip Puja Vidhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMulchand Kisandas Kapadia
PublisherDigambar Jain Pustakalay
Publication Year2000
Total Pages338
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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