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________________ श्री तेरहद्वीप पूजा विधान [13 __ अथ आभूषण लक्षण दोहा-श्री जिनकी पूजा करै, सो नर इन्द्र समान। ___ आभूषण पहिरे इते, सो लीजे पहिचान // 79 // सुन्दरी छन्द धरै सीस सु मुकुट सुहावनो, भुजन बाजूबन्द सु लावनो। करन कुण्डल मणमई सोहनी, रतनजडित कड़े कर मोहनी॥ सरस कंठ विषै कंठी कही, धुकधुकी अरु हार सुलहलही। परम पहुंची पहर सुहावनी, जगमगात सो जोति कहा मनी॥ पहरकै जो जनेऊ सार जू, कनक मणमई अति मनहार जू। रतनमई कट मेखल जानिये, परमछुद्र सुघंटिक मानिये॥ पहर अगुरिनमैं दस मुंदरी, कनक रत्न समूहनसों जरी। कनकसाकर घुघरू पगलसें,झुनझुनात सु भविजन मन बसें॥ और बहु आभर्ण विख्यात हैं, पहिरके सब मन हरषात हैं। कर सुवपु प्रक्षाल सुचावसों, चलत श्री जिनमंदिर भावसों॥ दोहा-आभूषण यह पहर कर, पूजै जिनवर देव। पाप पुंजको दलमलै, सुख पावै स्वयमेव // 85 // अथ पण्डित लक्षण (सवैया इकतीसा) बाल नहिं होय नहिं वृद्ध नहिं हीन अंग, क्रोधी क्रिया हीन नहिं मूरख गनीजिये। दुष्ट नहिं होय नहिं विशन विषै सुरति, पूजापाठ वाचने में बुद्धिसार लीजिये। दयाकर भीज रहा हिरदय कमल जाको, सुन्दर स्वरूप पाय दान सदा दीजिये।
SR No.032847
Book TitleTerah Dwip Puja Vidhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMulchand Kisandas Kapadia
PublisherDigambar Jain Pustakalay
Publication Year2000
Total Pages338
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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