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________________ 12] श्री तेरहद्वीप पूजा विधान ន២២២២២២២២២២២២២២២២ अथ कितने जीवनकी पूजा मनै है सो वर्णन (इकतीसा) कानो अन्ध धुन्ध टेर फोलो आंखमें सुजान, कानकटे नाककटी भंग अंग ठानिये। खोड़ो कोढ कुब्ज तोतलो सुर भंग अंगुली न होय, पंगुभेद गांड़ गूंगा खांसी जो प्रमानिये। फोड़ा कोढ़ कक्ष दाद बवेसी अद्दष्ट जान, बहरा भगंदर सु श्वेत दाग जानिये। बिशन जो सात लीन स्वांस रोग नाक वहै, ऐसे नर जीवनको पूजा मनै आनियो॥७४॥ अथ पूजाकारक जैसा होय ताका वर्णन (कुसुमलता छन्द) पढे ग्रन्थ सामायक विधिकर, पाप समूहनको जु हरै। छहो कायके जीव विचारे, तिनपर करुणाभाव धेरै॥ उज्जल चीर पहर आभूषण, भाव भक्तिसों नाहिं टरे। मन वचकायलायचरणन चित्त,पूजा श्रीजिनराज करै।।७५॥ अथ उज्जल चीर वर्णन दोहा-सातहाथ लांबा गिनों चौड़ा साढ़े तीन। सूत बसन उजल अमल, पहरत नर परवीन // 76 // ओढ़े सिखा लगाय पद, सकल देह ढक जाय। नेत्र नासिका कर खुलै, पूजत श्रीजिनराय॥७७॥ धोति स्वेत सुसूतकी, पहिरे मन हरषाय। मन वच तनलौ लायके, पूजत श्री जिनराय॥७८॥
SR No.032847
Book TitleTerah Dwip Puja Vidhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMulchand Kisandas Kapadia
PublisherDigambar Jain Pustakalay
Publication Year2000
Total Pages338
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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