SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 197
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 188] श्री तेरहद्वीप पूजा विधान = = = = = = = = = अथाशीर्वादः - कुसुमलता छन्द मध्यलोक जिन भवन अकीर्तम ताको पाठ पढ़े मन लाय। जाके पुन्य तनी अति महिमा, वरणन को कर सके बनाय॥ ताके पुत्र पौत्र अरु संपति, बाढै अधिक सरस सुखदाय। यह भव जस परभव सुखदाई, सुरनर पद ले शिवपुर जाय॥ इति आशीर्वादः। इति श्री पुष्करार्द्ध द्वीपमध्ये पूर्वदिश मंदिरमेरु सम्बन्धी षोडश जिनमंदिर पूजा सम्पूर्णम्। अथ मंदिरमेरु चारों विदिशा मध्ये चार गजदन्त पर चार जिनमंदिर पूजा नं. 35 ___ अथ स्थापना-कुसुमलता छन्द श्री मंदिरगिरकी कनकवरण छवि,ताकी चारों विदिशा जान। तहां चार गजदंत मनोहर, कहे केवली श्री भगवान // तिनपर श्री जिनभवन अनूपम, रतनमई जिनबिम्ब महान। तिनकी आह्वानन विध करके, हम पूजत हैं आनंद मान॥ ॐ ह्रीं मंदिरमेरुके चारों विदिशा मध्ये चार गजदन्तपर सिद्धकूट जिनमंदिरेभ्यो अत्रावतरावतर संवौषट् आह्वाननं, अत्र तिष्ठ तिष्ठ ठः ठः स्थापनं, अत्र मम सन्निहितो भव२ वषट् सन्निधिकरणम् स्थापनं। अथाष्टकं-सुन्दरी छन्द परम पावन नीर सु लायके पूजिये जिनचरन चढ़ायके। मेरु मंदिरके गजदंत जू, तहां सु जिन पूजत भवि संत जु॥ ___ॐ ह्रीं मंदिरमेरुके अग्नि दिश सौमनस // 1 // नैऋत्य दिश विद्युत्प्रभ // 2 // वायव्य दिश मालवान // 3 // ईशानदिश गंधमादन नाम गजदन्त सिद्धकूट जिनम् दिरेभ्यो॥४॥ जलं॥
SR No.032847
Book TitleTerah Dwip Puja Vidhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMulchand Kisandas Kapadia
PublisherDigambar Jain Pustakalay
Publication Year2000
Total Pages338
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy