________________ श्री तेरहद्वीप पूजा विधान [187 = == == == = = == === == पद्धडी छन्द जै पुष्करार्द्ध वरद्वीप जान, ताकी पूरव दिश है महान। सो है श्रीमंदिरमेरु सार, कलधोत वरण द्युति है अपार // जोजन चौरासी सहस जान, उन्नत गिर वर भाषे पुरान। वन भद्रशाल नंदन रिशाल, सोमनस और पांडुक विशाल॥ जहां तीर्थंकरको न्हवन होय, फल फूल पत्र युत सघन सोय। जै चारों दिश चहुं वन मझार, षोड़स जिनमंदिर हैं निहार॥ जै तीन पीठ पर कमल जान, तापर जिनबिंब विराजमान। सतआठ अधिक प्रतिमा पवित्र, सब मंगल दर्व धरे विचित्र // वसुप्रातिहार्यवर्णनअपार,लखदरशभविकसमकितसुधार। वसुअंग धरा सो सीसलाय, कर जोर सचीपती नमत आय॥ जिन चरण कमल पूजत सुरेश, मुखपाठ पढ़त जै जै जिनेश। जै द्रुम द्रुम द्रुम बाजै मृदंग, खेचर खेचरनी नचै संग॥ जै छम छम छम घुघरु बजंत, जै ठम ठम ठमक सु पग धरंत। जै थेई थेई थेई धुन रही पूर, है रहो सु झुरमट जिन हजूर॥ निरजर निरजरनी सीस नाय, जिनराज छवि निरखे बनाय। जै सुर नाचत दे दे सुताल, पहरै गलमें मोतिनकी माल॥ जै जै जै फिरकी सु लेय, जिन सन्मुख सीस नवाय देय। जै जै जगजीवनके दयाल, मन वच तन गुण गावत सुलाल॥ घत्ता-दोहा श्री जिन महिमा अगम है, कोई न पावै पार।