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________________ श्री तरहद्वीप पूजा विधान [177 cururururururururururururururururururun पद्धडी छन्द जै द्वितीय धातुकीदीप जान तहां विजय अचलगिरिवर महान। जै ताकी दक्षिण दिश खन्न, जुत भरतक्षेत्र सोहैं सु धन्न / जै दोउ भरतके बीच सार, उत्तर दक्षिण लावो निहार। इक इक्ष्वाकार परो पवित्र, तिस उपर जिनमंदिर विचित्र // जय समोसरण रचना समान, वेदीपर कटनी तीन जान। जै सिंहासन पर कमल सार, सब मंगल दर्व धरे समार॥ भामंडल भव देखे जु सात, जै चमर जु चौसठ दुरत जात। जै क्षेत्र तीन सिरपर फिरात, जै सुर वरषावत कुसुम पात॥ जै वृक्ष अशोक जु लहलहाय, जै दुन्दुभि बाजे बजत आय। तहां श्रीजिनबिंब विराजमान,शतआठ अधिक प्रतिमाप्रमाद / / लख दरश भविक पावै अनंद,मुख जयजय शब्द करें सुछन्द। जै चतुरनिकाय जु देव आय, जिन चरणकमल पूजत बनाय॥ जै नृत्य करैं संगीत सार, विद्या बल रूप अनेक धार / जै गावै किन्नर देव गान, बाजे बाजै अनहद निशान / / जै खेचर खेचरनी सु आय, जिनराज दरश देखे अघाय। जिनचरणकमलपर सीसनाय भविकाल सदाबलबलसुआय॥ धत्ता-दोहा। इक्ष्वाकार तनी कही. पूजा सरस विशाल। पढत सुनत सुख उपजै, लाल नवावत भाल // 21 // इति जयमाल।
SR No.032847
Book TitleTerah Dwip Puja Vidhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMulchand Kisandas Kapadia
PublisherDigambar Jain Pustakalay
Publication Year2000
Total Pages338
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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