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________________ 176] श्री तेरहद्वीप पूजा विधान rururururunurrorununurinnProcur फेनी घेवर मोदक खाजे, ताजे तुरत बनाई। श्री जिनचरण चढ़ाय गाय गुण, क्षुधारोग न रहाई ।आछी.॥ विजय अचलमेरु. // 6 // ॐ ह्रीं // नैवेद्यं // मणिमई दीप थालमें धरके, जगमग जोत सुहाई। मोह कर्मके दूर करनको, श्री जिन चरण चढाई आछी.।। विजय अचलमेरु. // 7 // ॐ ह्रीं // दीपं / / कृष्णागर वर धूप दशांगी खेवत जिन ढिग जाई।। मनवच कायलाय चरणन चित,करमन देत जलाई।आछी.॥ विजय अचलमेरु. // 8 // ॐ ह्रीं ॥धूपं // श्रीफल लौंग सुपारी पिस्ता, अरु बादाम मंगाई। श्रीजिनचरण चढ़ावत भविजन,शिवफल पावत जाईआछी. विजय अचलमेरु. // 9 // ॐ ह्रीं // फलं // जल फल अरघ चढ़ाय गाय गुण, नाचत देदे ताल। इक्ष्वाकार तनी यह पूजा, वांचैं सुरपति लाल ॥आछी.॥ विजय अचलमेरु. // 10 // ॐ ह्रीं ॥अर्घ // सुन्दरी छन्द धातुकी दक्षिण दिशमें कहो, मेर इक्ष्वाकार सु बन रहो। गिरिशिखरजिनधाम विशाल जू,अरघले पूजत भविलालजू॥ ___ ॐ ह्रीं धातुकी द्वीप मध्ये विजय अचलमेरुके दक्षिणदिश दोनों भरतक्षेत्रके बीच इक्ष्वाकार पर्वत पर सिद्धकूट जिनमंदिरेभ्यो॥१॥ अर्घ / अथ जयमाल - दोहा विजय अचल दक्षिण दिशा, इक्ष्वाकार विशाल। तिनपर जिनमंदिर जजू, अब वरनू जयमाल॥ पाहा
SR No.032847
Book TitleTerah Dwip Puja Vidhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMulchand Kisandas Kapadia
PublisherDigambar Jain Pustakalay
Publication Year2000
Total Pages338
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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