SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 124
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ श्री तेरहद्वीप पूजा विधान [115 SSSSSSSSSSSSSSSSSwara कृश्नागर वर धूप मनोहर, दशविध गंध मिलावो। आठ कर्म जारन प्रभु सनमुख, धूप खेय गुण गावोभला.॥ विजयमेरु.॥८॥ ॐ ह्री. ॥धूपं॥ दाख छुहारे श्रीफल पिस्ता, किसमिस लौंग सुपारी। शिवरमणी वर पूजत भविजन, पावै शिवफल भारी॥भला.॥ विजयमेरु.॥९॥ ॐ ह्रीं. // फलं॥ जल फल अर्घ चढाय गाय गुण, नाचत दे दे तारी। विघन हरन जिनराज चरन पर, लाल सदा बलिहारी॥भला. विजयमेरु.॥१०॥ ॐ ह्रीं. ॥अर्घ॥ अथ प्रत्येकाघ - कुसुमलता छन्द विजयमेरु उत्तर ऐरावत, रुपाचल सोहै अभिराम। ताके शिखरकूट भव उन्नत, रत्नमई विंतर विश्राम॥ सिद्धकूट तिस बीच मनोहर, तहां जु श्री जिनवरको धाम। तिनके चरणकमल वसुविध हम, चढाय जजत निज ठाम॥ ॐ ह्रीं विजय मेरुके उत्तर दिश ऐरावत क्षेत्र संबंधी रूपाचल पर सिद्धकूट जिनमंदिरेभ्यो॥१॥ अर्घ॥ अथ जयमाला (दोहा) विजय उत्तर दिशा, ऐरावत सु विशाल। रुपाचल पर जिन भवन, सुन तिनकी जयमाल॥१२॥ - पद्धरि छन्द जै द्वीप धातुकी अति उदार, जाकी पूरव गिरि विजयसार। तिस गिरिकी उत्तर दिश महान, तहां ऐरावत वर क्षेत्र मान॥ जहां छहों कालकी फिरन होय, निज पुन्य पाप फल लहैं सोय। जै तीन कालमें भोगभूम दश कल्पवृक्ष तहां रहें झूम॥
SR No.032847
Book TitleTerah Dwip Puja Vidhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMulchand Kisandas Kapadia
PublisherDigambar Jain Pustakalay
Publication Year2000
Total Pages338
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy