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________________ 114] श्री तेरहद्वीप पूजा विधान ========== == अथाष्टकं-चाल प्रभु पूजोरे भाई, भला प्रभु पूजोरे भाई। यह श्रावक कुलको पायक, प्रभु पूजोरे भाई॥ टेक॥ पुंडरीक द्रहको उज्जल जल, कंचन झारी भरिये। श्री जिनचरण चढ़ावत भविजन, जन्मजर दुख हरिये। प्रभु.॥ विजयमेरु उत्तर ऐरावत, रुपाचल गिरि सोहै। ताके उपर सिद्धकूट है, जिन मंदिर मन मोहे प्रभु.॥ ___ॐ ह्रीं विजयमेरुके उत्तर दिश ऐरावतक्षेत्र संबंधी रूपाचल पर सिद्धकूट जिनमंदिरेभ्यो॥२॥ जलं॥ मलयागिर घन सार सुचन्दन, केसर घिसकर लावो। भव आताप हरन जिनवर पद, पूजत दाह मिटावोभिला.॥ विजयमेरु.॥३॥ ॐ ह्रीं. // चंदनं॥ देवजीर सुखदायक मोदक, सुन्दर धोय सु लीजो। श्वेत वरण मुक्ता सम अक्षत, पूंज मनोहर दीजो॥भला.॥ विजयमेरु.॥४॥ॐ ह्रीं. // अक्षतं॥ वेल चमेली कुन्द केतकी जल थल कमल मंगावो। कामबाण नाशन जिनवर पद, सुन्दर फूल चढ़ावोभला.॥ विजयमेरु.॥५॥ॐ ह्रीं. // पुष्पं // बावर घेवर मोदक खाजे, ताजे तुरत सु करके। क्षुधा हरण जिनचरण चढावो, कंचन थाल सु भरकै॥भला. विजयमेरु.॥६॥ ॐ ह्रीं. // नैवेद्यं // जगमग जोत होत रतनकी, मणिमई दीप सु लावो। मोह-तिमिरके नाश करणको, जिनवर चरण चढ़ावोभला. विजयमेरु.॥७॥ ॐ ह्रीं. // दीपं॥
SR No.032847
Book TitleTerah Dwip Puja Vidhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMulchand Kisandas Kapadia
PublisherDigambar Jain Pustakalay
Publication Year2000
Total Pages338
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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