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________________ श्री तेरहद्वीप पूजा विधान [109 ==================== घत्ता-दोहा पश्चिम विजय सुमेरुके, षोड़श क्षेत्र विशाल। श्री जिनभवन अनादि लख, लाल रची जयमाल॥ इति जयमाला। अथाशीर्वादः - कुसुमलता छन्द मध्यलोक जिन भवन अकीर्तम, ताको पाठ पढै मन लाय। जाके पुन्यतनी अति महिमा, वरणनको कर सकै बनाय॥ ताके पुत्र पौत्र अरू सम्पति, बाढै अधिक सरस सुखदाय। यह भव जस परभव सुखदाई, सुरनर पद ले शिवपुर जाय॥ इत्याशीर्वादः इति श्री विजयमेरुके पश्चिम विदेह सम्बन्धी षोडश रुपाचल पर्वत पर सिद्धकूट जिनमंदिर पूजा सम्पूर्णम्। ___ / / अथ विजयमेरुके दक्षिणदिश भरतक्षेत्र संबंधी रुपाचल पर सिद्धकूट जिनमंदिर पूजा नं. 19 अथ स्थापना - कुसुमलता छन्द विजयमेरुकी दक्षिण दिशमें, भरत क्षेत्र सुन्दर सु विशाल। वीसचार तीर्थंकर निवसैं, सुरनर खगपति नावत भाल॥ रूपाचल तहां पढो मनहर, सिद्धकूट जिनभवन रिशाल। तिनकी आह्वानन विध करके, अपने घर पूजैं तिहुँ काल॥ ___ॐ ह्रीं विजयमेरुके दक्षिण भरतक्षेत्रसम्बन्धीरूपाचल परसिद्धकूट जिनमंदिरेभ्यो अत्रावतरावतर संवौषट् आह्वाननं, अत्र तिष्ठ तिष्ठ ठः ठः स्थापनं, अत्र मम सन्निहितो भवर वषट् सन्निधकरणम् स्थापनं /
SR No.032847
Book TitleTerah Dwip Puja Vidhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMulchand Kisandas Kapadia
PublisherDigambar Jain Pustakalay
Publication Year2000
Total Pages338
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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