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________________ 108] श्री तेरहद्वीप पूजा विधान SNESharashNrNarSNNNNrsrirara पद्धडी छन्द जै विजयमेरु शोभै महान, ताकी पश्चिम सु विदेह जान। तहां षोडश देश वसै सु थान रुपागिर षोड़श है सु जान॥ तिनपर जिनमंदिर है विशाल षोडश मन मोहत द्युति रिशाल। जै रत्नमई रचना अपार, बन रहा सु अद्भुत हिये धार॥ जै जगमग जगमग जोति सार, जै तीन पीठ सोहै सिंगार। जै सिंहासन पर कमल देव, सुर खग मन हर्ष बढो विशेख॥ तहां राजै श्री जिनराज देव, शत इन्द्र चरणकी करत सेव। जै छत्र तीन सिरपर फिराय, भामंडल छवि वरणी न जाय॥ जै चौसठ चमर ढुरै विचित्र, सब मंगल दर्व धरै पवित्र। तहां खेचर खेचरनी सु आय, पूजै जिनवर अति प्रीत लाय॥ पुन करत आरती जुगल हाथ, जै जै धुन कर नावतसु माथ। जै नृत्य करत संगीत आय, गुणगान करत बाजे बजाय॥ जिनराज सभी नैनन निहार, विद्या बल रूप अनेक धार। द्रुम द्रुम द्रुम द्रुम बाजै मृदंग, खेचर खेचरनी नचैं संग॥ जै दुंदुभी नाद बसें अकाश, जै गन्धोदक वरसै सु वाश। तहां श्रीमुनिराजधरैसुध्यान, निजअनुभवरसकोकरनपान॥ यह विध वरनन है बहु अपार, वरनत कवि कैसे लहै पार। हम शक्ति हीन तुम भक्त धार, तुम गुण वरणन कीनो सवार॥ तुम जग जयवन्ते होहु देव, हम करै सदा तुम चरन सेव। हमपर किरपा कीजे दयाल, कर जोर सीस नावत सुलाल॥
SR No.032847
Book TitleTerah Dwip Puja Vidhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMulchand Kisandas Kapadia
PublisherDigambar Jain Pustakalay
Publication Year2000
Total Pages338
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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