SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 730
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ काष्ठभूतस्तपस्तेपे] महाभारतस्थ [कांश्चिदभ्यवदत्प्रेम्ण काष्ठभूतस्तपस्तेपे 12. App. 29E. 40 pr. काष्ठभूताः समाहिताः 12. 323. 204; 327. 414. काष्ठभूतेव लक्ष्यते 3. 280. 84. काष्ठभूतो महामुनिः 13. 50. 9". काष्ठभूतोऽऽश्रमपदे 9. 49. 20deg. काष्ठलोष्टसमं क्षितौ 14. App. 4. 2201 post. काष्टलोष्टसमं जनाः 13. 112.30, 10, 13. काष्ठलोष्टसमो हि सः 13. App. 15. 4083 post. काष्ठलोहतुषाङ्गार- 12. 87. 13deg. काष्ठवन्मौनमास्थाय 13. App. 15. 658 pr. काष्ठवांश्चैव पर्वतः 14. 43. 44. काष्ठातिगो मातरिश्वेव नर्दन् 14. 9. 10. काष्टातीत इवादित्यः 7.65. 136. काष्ठादग्निर्यथैव च 12.238. 15. काष्ठादस्मेव पण्डितः 3. 34. 324. काष्ठानि चाभिहार्याणि 12.69. 444 काष्टा निमेषा दश पञ्च चैव 12. 224. 120. काष्ठानि वरवर्णिनी 5. 188. 164. काष्ठानीमानि सन्तीह 3.281.776. काष्ठानीवाशुष्काणि 14. 22. 176. काष्ठान्यपि हि जीर्यन्ते 12. 28. 29. काष्ठान्यानयितुं ययौ 14.55.8. काष्ठान्यानीय मां दह 3. App. 25. 68A 2 post. काष्ठाभिरयनैस्तथा 8. App. 2. 61 post. काष्ठाश्च ऋतवस्तथा 8.258*.9 post. काष्ठां चासाद्य धानिष्ठां 5. 107. 15. काष्ठां प्रपद्यन्तमुदक्पतंगम् 12. 51. 154. काष्ठेऽग्निरिव शेरते 5. 37.58%3; 38. 14. काष्ठे पावकमन्ततः 3. 33. 25. काष्ठैरानैर्यथा वह्निः 12. 37. 34". काष्ठोपलशिलाघातः 14. App. 4. 654 pr. का सती के वयं तव 1. 222. 13. का सपत्नधने दया 12. 129. 8. कालांचिद्रातरं तथा 1. 1189*.5 post. कासि कस्य कुतो वेति 12. 308. 96", 127". कासि कस्यासि कल्याणि 3. 61. 113. कासि कस्यासि किं चेह 3. 213. 15. कासि कस्यासि रम्भोरु 1. 160. 340. कासि कस्यासि वाङ्गने 1. 92. 211. कासि कस्यासि सुश्रोणि 1. 65. 12". कासि देवि कुतो वा त्वं 13. 81. 4". का सीमा तव भूमेस्तु 12. App. 19. 18 pr. कास्तत्रासंस्तपोधन 3. 119. 14. का हि कान्तमिहायान्तं 12. 168. 49". का हि लब्ध्वा प्रियान्पुत्रान् 1. 34.7. का हि सर्वेषु लोकेषु 1. 161. 17. का कथां पृष्टवांश्च सः 12. App. 32. 19 post. कां गतिं कृष्ण गच्छति 6. 28. 374. कां गतिं न गमिष्यामि 11. 25. 4". कां गतिं प्रतिपत्स्यते 9. 63. 364. 10. 9. 334. कां गति प्रतिपत्स्यामः 12. 271.67. कां गतिं याति जाजले 12. 255. 340. कां गतिं वदतां श्रेष्ठ 14. App. 4. 2553 pr. कां गमिष्यामि वै गतिम् 14. 20.4. कां च काष्ठां समासाद्य 3. 188.7% कां च गच्छन्ति कर्मणा 12. 233. 14. कांचिच्चेष्टां नराधिपाः 7. 159. 17'. कांचिच्चेष्टां महारथः 7. 159. 124. कांचित्पश्यामि चिन्तयन् 5. App. 9. 38 post. कां तु ब्राह्मणपूजायां 13. 137. 1". कां त्वं प्रीतिमवाप्स्यसि 3.265.21". कां त्वं प्रीतिं लप्स्यसे याज्ञसेनि 2. 68. 11'. कांदिग्भूतं छिन्नगात्रं विसंज्ञं 5. 47. 56deg. कांदिग्भूताः श्रान्तपत्राः 6. 67.8". कांदिग्भूतो जीवितार्थी 12. 163. 4". कां दिशं प्रतिपत्स्यामः 1. 138. 29. कां दिशं प्रतिपत्स्यामि 8. 5. 56. कां दिशं विद्यया यान्ति 12.233. 1. कांदिशीका विचेतसः 8. App. 43. 19 post. 9. App. 1 14 post. 10. 8. 95. कां देवतां नु यजतः 12. 321. 19deg. कां नु यास्याम्यहं गतिम् 9. 2. ". कां नु वाचं संजय मे शृणोषि 5. 26. 1". का बुद्धिं समनुध्याय 12. 171. 59deg. कां यज्ञो नातिवर्तते 3. 297. 34. कां योनि देव गच्छति 14. App. 4. 2556 post. कां योनिं प्रतिपन्नास्ते 13. 118. 1. कां वा बुद्धिं विनिश्चित्य 14. 32. 136. कां वा ब्राह्मणपूजायां 13. 143.20. कांश्च प्रमथ्याधिरथिः 8. 32. 24. कांश्चिच्चापि पराङ्मुखान् 10. 8. 110". कांश्चिच्छकुनजातांश्च 3. 155.56*. कांश्चित्कांश्चिद्वयस्यवत् 1. 213. 39deg. कांश्चित्तत्र दशन्ति वै 13. App. 15. 2662 post. कांश्चित्प्राणैर्ययोजयत् 1. App. 73. 59 post. कांश्चिदभ्यवदत्प्रेम्णा 1. 213. 39deg, -722
SR No.032840
Book TitlePatrika Index of Mahabharata
Original Sutra AuthorN/A
AuthorParshuram Lakshman Vaidya
PublisherBhandarkar Oriental Research Institute
Publication Year1967
Total Pages808
LanguageEnglish
ClassificationCatalogue
File Size25 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy