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________________ का हिस्सा लम्बा होना तथा पीठ से चिपका हा होना, प्रतिमा को संप्रति काल की अथवा उसके समीपस्थ उतरार्द्ध की होना प्रदर्शित करता है। - श्री नाकोड़ा तीर्थ के दो काउसग्ग संवा 1203 वि. के हैं। इन पर श्रीवच्छ चैत्य लिखा है श्रीवत्स भगवान शीतलनाथ का चिह्न है जिससे प्रतीत होता है कि या तो इस वर्तमान प्रादिनाथ मदिर में कभी शीतलनाथ भी मूलनायक थे अथवा इस क्षेत्र में शीतलनाथ का अलग मंदिर था व किसी भूमिगृह स्थापन के पश्चात जीर्णोद्धार के समय इन काउसग्गीयों को इस जिनालय में स्थापित किया गया हो / शिलालेखों के अनुसार मूलरूप से यह मंदिर विमलनाथ मंदिर था व भगवान आदिनाथ का यहाँ स्थापन इसके पश्चात का है जो संभवतया संवत 1525 के आसपास का हो / तीर्थ के भण्डार में धातुप्रतिमा पर संवत 109 उत्कीर्ण है / उसके प्रागे का कुछ भाग घिसा हुआ है / संभव है यह प्रतिमा 1060 से 1066 विक्रमो को हो / अर्थात ईसा की नौवीं शताब्दी में इस क्षेत्र में जैन-प्रभाव असंदिग्ध है। किराड़ . जूना देवका, चौहटन, गुढ़ा-नगर के मंदिर भी अति प्राचीन हैं। किराड़ में वर्तमान धनीभूत मंदिरो में जैन-मंदिर भी थे व उनके शिलालेखों का ऐतिहासिघ महत्त्व है / डा. वाकणकर के अनुसार देवका के सूर्य मन्दिर तथा किराड़ के विभिन्न मन्दिर खेड़ के विष्णु मंदिर इत्यादि गुप्तकाल व उसके पूर्व के हैं। खेड़ का जैन-शिलालेख जो वहां एक टांके के मन्दिर क्षेत्र में ही खुदाई के समय प्राप्त हुमा था संवत 1026 के प्रासपास का है और वर्तमान विष्णमन्दिर के पास से प्राप्त होने का अर्थ है कि प्राचीनता में जैन सस्कृति का यहाँ प्रभाव इस नगर के समद्धिकाल से ही होना चाहिए। खेड़' एक प्राकृत शब्द है जिसका उल्लेख कल्पसूत्र में भी हुया है / प्राकृत में खेड़ का अर्थ 'समद्धिशाली नगर' है। जबकि खेडा शब्द नगरों के प्रासप स के ग्रामीण इलाकों के लिए आज भी राजस्थान गुजरात व महाराष्ट्र में काम लिया जाता है / नाकोड़ा तीर्थ पर अनेक प्रतिमाओं पर खेड़ नगर व महेवा का उल्लेख है, जिनमें कुछ बिना संवत् की है / विक्रमी को प्रारम्भिक शताब्दियों में प्रतिमानों पर सवत लगाने अथवा लेख अकित करने की प्रथा नहीं थी अतः यह मूतियें प्रत्यन्त प्राचीन होना प्रतीत होती है। खेड़ के वर्तमान विष्णुमन्दिर व प्रदेश के समीप के मन्दिरों का शिल्प गुप्त काल - व उसके पूर्व का है।
SR No.032838
Book TitleBadmer Jile ke Prachin Jain Shilalekh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJain Shwetambar Nakoda Parshwanath Tirth
PublisherJain Shwetambar Nakoda Parshwanath Tirth
Publication Year1987
Total Pages136
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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