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________________ .. [ 34 ] हैं कि- "ऐसा कोई उल्लेख मूलागमों में दृष्टिगोचर नहीं होता है।" किन्तु प्राचार्य को दुरंगी नोति देखो कि 60 हजार पुत्रों की मौत के बाद सगर चक्रवर्ती का विरह विलाप और संसार वैराग्य प्रादि का वर्णन श्री शीलांगाचार्य महाराज रचित "चउवन महापुरिस चरियं” नामक ग्रन्थ के सहारे ही लिखते हैं। प्राश्चर्य तो यह है कि यहाँ प्राचार्य हस्तीमलजी ने ऐसा क्यों नहीं लिखा कि "ऐसा कोई उल्लेख मूलागमों में दृष्टिगोचर नहीं होता है।" श्री आवश्यक सूत्र, श्री सिद्धस्तव आदि अनेक प्राचीन ग्रंथों एवं पूज्य हेमचन्द्राचार्य महाराज और पूज्य शोलांगाचार्य महाराज जैसे सत्यवती प्राचीन ग्रन्थकारों ने लिखा है कि प्रष्टापद पर्वत स्थित जिनमंदिरों की रक्षा हेतु खाई खोदने और उसमें गंगा का पानी प्रवाहित करने पर नाग देवता के कोप में जह्न आदि 60 हजार सगरपुत्रों ने जान गंवायी थी / पूर्वाचार्यों के इस सत्य कथन को असत्य कहकर प्राचार्य हस्तीमलजी ने किंवदन्ती स्वरूप पौराणिक गपोड़े का पक्ष करके जिन मन्दिर एवं जिनप्रतिमा विषयक अपनी द्वेष परायणता का परिचय खंड 1, पृ० 165 पर दिया है / यथा xxx संभव है, पुराणों में शताश्वमेघी की कामना करने वाले महाराज सगर के यज्ञाश्व को इन्द्र द्वारा पाताल लोक में कपिलमुनि के पाश बांधने और सगरपुत्रों के वहां पहुंचकर कोलाहल करने से कपिलऋषि द्वारा भस्मसात् करने की घटना से प्रभावित हों जैनाचार्यों ने ऐसी कथा प्रस्तुत की हो।xxx मीमांसा-ऐसा अनर्थ करने वाले प्राचार्य के ऐतिहासिक ज्ञान पर हमें तरस आता है / दृष्टिराग एवं जिनमन्दिर विषयक द्वेष के कारण ही इस अप्रमाणिक पौराणिक गपोड़े को प्राचार्य ने आगे
SR No.032834
Book TitleKalpit Itihas se Savdhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhuvansundarvijay, Jaysundarvijay, Kapurchand Jain
PublisherDivya Darshan Trust
Publication Year1983
Total Pages222
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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