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________________ [ 32 ] किया / इन दोनों आचार्यों के उपरि उद्धत ग्रन्थों में उल्लेख है कि जहँनु आदि उन 60 हजार सगर पुत्रों ने भवनपतियों के भवन तक खाई खोद डाली / जनु कुमार ने दण्ड रत्न के प्रहार से गंगानदी के एक तट को खोदकर गंगा के प्रवाह को उस खाई में प्रवाहित कर दिया और खाई को भर दिया। खाई का पानी भवनपतियों के भवनों में पहुंचने से वे रुष्ट हुए और नागकुमारों के रोष वश उन 60 हजार सगर पुत्रों को दृष्टिविष से भस्मसात् कर डाला / मीमांसा-प्राचार्य ने यहां कपट करके अष्टापद पर्वत पर जिनमंदिर था इस तथ्य को प्राचार्य श्री हेमचन्द्रसूरिजी और प्राचार्य श्री शीलांगाचार्यजी के नाम से लिखकर स्वयं को मंदिर के विषय में अलिप्त रखकर अन्याय पूर्ण कृत्य किया है / सत्य स्वीकारने का अवसर प्राया वहाँ चालाकी पूर्वक अन्य के नाम लिख देना बेईमानी ही मानी जायेगी। आश्चर्य तो यह है कि अन्य ऐतिहासिक प्रसंग इन्हीं ग्रन्थों में से लेकर वहां प्राचार्य हस्तीमलजी ने ऐसा व्यक्त नहीं किया है कि पूर्वाचार्यों ने ऐसा लिखा है, किन्तु वहां तो उन्होंने स्वयं अपने नाम से ही लिख दिया है। फिर जिन मंदिर और जिन प्रतिमा की बात मायी वहाँ ऐसा अन्याय क्यों ? पूज्य हेमचन्द्राचार्य महाराज और पूज्य शोलोगाचार्यादि अनेक सुविहित पूर्वाचार्यों के नामोल्लेख करके प्राचार्य हस्तीमलजी खंड-१ (पुरानी प्रावृत्ति ) अपनी बात पृ० 6 पर लिखते हैं कि xxxउपरोक्त पर्यालोच के बाद यह कहना किंचित् मात्र भी अतिशयोक्तिपूर्ण नहीं होगा कि हमारा जैन इतिहास बहुत गहरी सुदृढ़ नींव पर . खड़ा है। यह इधर उधर को किंवदन्ती या कल्पना के आधार से नहीं पर प्रामाणिक पूर्वाचार्यों की अविरल परम्परा से प्राप्त है / अतः इसकी विश्वसनीयता में लेशमात्र भी शंका को गुजाइश नहीं रहती।xxx
SR No.032834
Book TitleKalpit Itihas se Savdhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhuvansundarvijay, Jaysundarvijay, Kapurchand Jain
PublisherDivya Darshan Trust
Publication Year1983
Total Pages222
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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