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________________ [ 165 ] जेणेव जिणपडिमाओ तेणेव उवागच्छति, उवागच्छित्ता जिणपडिमाणं आलोए पणामं करेंति, करित्ता लोमहत्थएणं गिहंति, गिहित्ता जिणपडिमाणं लोमहत्थएणं पमज्जइ, पमज्जित्ता जिणपडिमाओ सुरभिणा गंधोदएण व्हाणेइ, हाणित्ता सुरभिगंधकासाइएणं गायाई लूहेति, लूहित्ता जिणपडिमाणं सरस गोसीस चंदणेणं गायाइं अणुलिपइ, अणुलिपइत्ता अहयाई देवदूस जुयलाई नियंसेइ, नियंसित्ता पुप्फारुहणं मल्लारुहणं गंधारुहणं चुण्णरुहणं वन्नारुहणं वत्थारुहणं आमरणारहणं करेइ, करित्ता आसतोसत्त विउलवट्टवग्धारिय मल्लदामकलावं करेइ, मल्लदामकलावं करित्ता कयग्गह गहिय करयल पन्भट्ठ विप्पमुक्केणं दसद्धवन्नेणं कुसुमेणं मुक्क पुप्फ-पुजोवयार कलियं करेंति, करित्ता जिणपडिमाणं पुरतो अच्छेहि सण्हेहि रययामएहि अच्छरसा तंदुलएहिं अठ्ठ मंगले आलिहइ, तं जहा-सोत्थिय जाव दप्पणं / तयाणंतरं च णं चंदप्पभरयण वइर वेरुलिय विमलदंड कंचण मणिरयण भत्तिचित्तं कालागुरु-पवर कुदरुक्क तुरुक्क पूव मघमघंत गंधुत्तमाणुविद्ध च धूवट्टि विणिम्मुयत्तवेरुलियमयं कडुच्छुय पग्गहियपयत्तेणं "पूर्व दाउणं जिणवराणं" अठ्ठसय विसुद्ध गंथजुत्तेहिं अत्यजुत्तेहिं अपुणरुत्तेहिं महावित्तेहिं संथुणइ, संथुणईत्ता सत्तठ्ठ-पयाई पच्चोसक्कइ, पच्चोसक्कईत्ता वामं जाणु अंचेइ, अंचईत्ता दाहिणं जाणु धरणीतलंसि निहट्ट, तिक्खुत्तो मुद्धाणं धरणीतलंसि निवाडेइ, निवाडित्ता ईसि पच्चुण्णमइ, पच्चुण्णमईत्ता करयल परिग्गहियं सिरसावत्तं मत्थए अंजलि कट्ट, एवं वयासि-नमोत्थुणं अरिहंतागं जाव संपत्ताणं वंदइ, नमसइ, वंदित्ता नमंसित्ता जेणेव देवच्छंदए जेणेव सिद्धायतणस्स बहुमज्झदेसभाए तेणेव उवागच्छइ / [ रायप्पसेणी सूत्तं ] 444 अर्थ-उसके बाद सूर्याभदेव चार हजार सामानिक देवों के साथ यावत अन्य भी अनेक सूर्याभविमान में निवास करने वाले देव तथा देवियों के साथ सपरिवार सर्वऋद्धि से सहित ( युक्त ) यावत् वाजिंत्रनाद के साथ जहाँ सिद्धायतन ( जिन मंदिर ) है वहाँ प्राता है, आकर पूर्वद्वार से सिद्धायतन में प्रवेश करता है, प्रवेश करके जहाँ देव
SR No.032834
Book TitleKalpit Itihas se Savdhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhuvansundarvijay, Jaysundarvijay, Kapurchand Jain
PublisherDivya Darshan Trust
Publication Year1983
Total Pages222
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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